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ફટ
क्षीरार्णव अ - १२० क्रमांक अ.-२२
दश हाथ से चौदह हाथ के सांधार प्रासाद के मध्य स्तूप ( मध्य लिंगT-मूल गर्भगृह और दिवारोंके साथ के भाग ) के नहीं लेकिन बारह रेखा पर हो उनके दसवें ग्यारहवें या बारहवें भाग में इस तरह त्रिविधमान ज्येष्ठ मध्यम और कनिष्ठ अनुक्रमसे औसारका जानना । मध्य स्तूपकी भित्ति सोलहवें भाग में रखना । पाषाणके निरंधार प्रासादका भित्तिमान प्रासाद के पाँचवें भाग में रखना । १४८ - १४९-१५०
उपर्युपरिभूमीनां शंखावत (सव्यावर्त) प्रदक्षिणे । नापसव्येन कुर्वीत द्वारमारोहणीनि च ।। १५१॥ गर्भमध्ये कृतं द्वारं पुनर्विव च स्थाप्यते । नंदवेद्याकृत्ये मध्ये शिखरं सर्वकामदम् ॥ १५२॥
આ મા ચામુખની ઉપરની ભૂમિએ શંખાવત (સભ્યાવત) ફરતે પ્રદક્ષિણાએ કરવાઃ તેના દ્વારના કમાડ અપસવ્ય ન ४२वा. ઉપર ગર્ભ ગૃહ કરીને તેમાં વચ્ચે દ્વાર મૂકી ફરી ખીમ-મૂર્તિની સ્થાપના ઉપરના માળે કરવી. તે સર્વ કામનાને દેનારું એવું શિખર ૪૯ પદના મધ્યમાં કરવુ. ૧૫૧-૧પર
इस महा चोमुखकी उपरकी मूमि पर शंखावर्त (सव्यावर्त) फिरते प्रदक्षि पायें करना । उनके द्वारके किवाड़ अपसव्य न करना । उपर गर्भगृह कर उसमें बिमें द्वार रखकर फिर बींब- मूर्तिकी स्थापना उपरके मजले पर करना । इससे सर्व कामनाको देनेवाला ऐसा शिखर ४९ पदके मध्यमें करना । १५१-१५२ शुकनासं चतुपक्षे सर्वालंकार माश्रिते ।
द्विभूमि संयुता स्तत्रा त्रयो भूमिकृते बुधे ॥ १५३ ॥ एक भूमि द्वयो भूमि यावद् द्वादशभूमिका | जंधा वृद्धि क्रम योगेन चैकाद्य भास्करांतिके ॥ १५४ ॥
આવા મહા ચામુખ પ્રાસાદને શુકનાશ ચારે તરફ સુશાભિત અલંકૃત કરવા. તે છે ભૂમિવાળે કે ત્રણ ભૂમિવાળા બુદ્ધિમાન શિલ્પીએ કરવા. મહા ચાતુર્મુખ પ્રાસાદ એક-બે મજલા એમ ખાર માળ સુધી કરી શકાય. તે માવરની જ ંઘા તે ક્રમના ચેગે કરીને એકથી ખાર જંઘા સુધી કરવી. ૧૫૩–૧
ऐसे महा चोमुख प्रासादको शुकनाश चारों ओर सुशोभित अलंकृत करना । नह से या तीन भूमिबाला बुद्धिमान शिल्पीको करना चाहिये । महा चातुर्मुख प्रसाद एक दो मजले इस तरह बारह मजले तक कर सकते हैं । उसकी istent जंघा उस क्रमके योगसे एकसे बारह जंधा तककी करना । १५३ - १५४