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________________ लम्बचोरस गर्भगृहको बाहरके तलछंद घंटाके विना क्रमसे भूमिका चढाकर उसकी भूमिका गजपृष्ठाकृति (वरंडिका जैसे लोढिये) करना । तब वह सर्व कामनाओंको देनेवाला जैसा वलभी छंद जानना । अपराजितकारने उसे विमान नागर छंदके प्रासादके कुलका माना है, और उसके चार प्रकार आकार परसे नामाभिधान दिया है ! १. लम्बचोरस पुष्प प्रकार २. चोरस-संकीर्ण ३. वृतको रत्नज्योति ४. लंबगोलको महार्चिष कहते हैं। द्राविडमें महाबलिपुरम् वगैरह स्थलपर हिमाचल प्रदेश-कलिंगमें वलभी जातिके प्रासादों छुट्टे छ्वाया देखने में आते हैं। भुवनेश्वरमें वैतालदेवलका अलंकृत मंदिर वलभी जातिका है। आयताश्र (लम्ब-चोरस) तलवाले, हस्तांअगुल उपांगोवाले या उपांगोके विना वलभी प्रासादोंकी टोचपर नागर या भूमिज शिखर नहीं हो सकता है। अभीतक मिले हुए ऐसे प्राचीन-प्रासादोंके अभ्याध परसे मालुम होता है कि कम घाटवाली पीठ और मंडोवर सामान्यतया सादे होते हैं। मंडोवरके शिरो भागमें स्कंधवेदी (गोल वलीके जैसी) करके उसके उपर लम्बाकारमें अर्घगोलाकार वलभी किया जाता है। उसकी छोटी बाजुओंके दोनों सिरों पर चंद्रशालाकी टोच पर दोनों तरफ सिंह बिठाये हुए हैं। वलभीकी टोच पर एक या तीन कलयुशक्त आमलसारिकायें रखी जाती हैं। ऐसा प्रकार वलभीका है, और दूसरा प्रकार लम्बचोरस गर्भगृहके बाहर चारों ओर वलिका अर्धगोलाकार कर मध्यमें वलभी संकुचित लम्ब-चोरस वलभी कर उसकी दोनों तरफ छोटी बाजुओं पर चन्द्रशाल ( उद्गम-देढिये) कर उपर कलश चढाया जाता है। तीसरा प्रकार-लम्ब-पोरस या समचौरस गर्भगृह पर उपरोक्त दोनों प्रकारकी तरह वलित पट्टीका कपोत-कंठादिके निकलते घाटके थर करके उपर बलिकाका घाट करके वैसे तीन या पाँच थरोंको उत्तरोत्तर संकोच कर चढाकर उपर आमलक कलश चढ़ाया जाता है। प्रत्येक वलिकाके थरमें पहलेमें पाँच, दूसरे में तीन इसी तरह चैत्य-कूट किये जाते हैं। सामान्यतया वलभी प्रासादोंके अग्र भागमें मंडप जुड़ा हुआ हो, बैसे दृष्टांत देखनेको नहीं मिलते हैं। १२. फासनाकार-इस जातिके प्रासादोंको सामान्य पीठ मंडोवर पर आजलियाँ क्रमशः उत्तरोत्तर संकोचकर चढ़ाकर टोचपर घंटाकलश रखा जाता है। भद्रपर सिंहकर्ण (बड़ा उद्गम) वाली रचनाको अपराजितपृच्छाकारने फासनाको
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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