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अथ रेखाविचार
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ભાવાર્થ –જેમ કમળ કમળ આકારનું નીચે મધ્ય અને ઉપર વિકસિક થાય छे. (३२) तेभ नीथेथी अधि अस्मे यांगण... अर्ध लागमां... सातभो लाग थडलु उवा. ते सूत्र... ( 33 ) मे शेते (५२ परिस्थाने सार्या साधवी.... तेवु शिभर में लाग.... माझी मान साधड (३४) शिरना स्ध यांधाना स्थाने ....ते सर्व हुर्भार्ग थी ते सहा अशुभारम् भवु ३२-३३-३४-३५. जिस तरह कमल कोमल आकारका नीचे मध्य और उपर विकसित होता है, ३२ - इस तरह नीचेसे अधिक दो दो अंगुल... अर्ध भाग में... सातवें भागको ग्रहण करने - उस सूत्र... (३३) इस तरह उपर परिस्थानपर कलार्चा साधना... वैसा शिखर दो भाग... बाकी मान साधक... ... (३४) शिखरके स्कंधके स्थान पर... उसको सर्व दुर्भार्गसे उसको सदा अशुभकारक जानना । ३५.
इति श्री विश्वकर्मा कृतायां श्रीरार्णवे नारद पृच्छते रेखा विचार शताग्रे चतुर्दशमोऽध्याय ॥ ११४॥ क्रमांक अ० १६
ઈતિ શ્રી વિશ્વકર્માં વિરચિત ક્ષીરાવે નારદજીએ પૂછેલ શિખર રેખા વિચાર લક્ષણ પર શિલ્પ વિશારદ સ્થપતિ શ્રી પ્રભાશંકર ધડભાઈ સામપુરાએ રચેલ સુપ્રભા નામની ભાષા ટીકાને એકસો ચૌદમા અધ્યાય ૧૧૪, ક્રમાંક અધ્યાય ૧૬.
इति श्री विश्वकर्मा विरचित क्षीरार्णव श्री नारदजी के संवादप शिखर रेखा विचार लक्षणपर शिल्प विशारद स्थपति श्री प्रभाशंकर ओघडभाई सोमपुराकी रचि हुआ सुप्रभा नाम्नी भाषाका एकसौ चौदहवाँ अध्याय ॥ ११४ ॥ क्रमांक अ० १६
अक विषयको सांगोपांग संकलितकर अध्यायोंको क्रमशः रखनेकी धृष्टता दुःखके साथ निरूपाय करनी पड़ी है। तों सुज्ञ विचारक विद्वानों परिस्थितिका विचारकर हमें क्षमा करेंगे जैसी आशा रखते हैं । जिस अकसीचौदहवें अध्यायमें कुछ अपूर्णता दिखनेसे जिस स्थितिमें पाठों मिळे अस स्थितिमें उनका प्रकाशन करना पडा है । भविष्य में कोई अच्छी शुद्ध प्रतोंकी प्राप्ति होनेसे कोइ भी विद्वान संशोधन कर प्रकाश डालेगा तो शिल्पि वर्गका ऋण चूकानेका कार्य माना जायगा । वैसे विद्वानोंके हम आभारी होंगे ।
जिस क्षीरार्णव ग्रंथ में जहां जहां हमें अनुवाद करनेमें असंबद्धता या अशुद्धि देखने में आयी और उसे पूर्ण करनेका काम जहां जहां शक्य नहीं हुआ हमने अनुवाद किये विना मूल पाठ ही दिये हैं ।