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अथ शिखर भद्र नासकादि
- - - ----------पंचनाशक बत्रीश विभाग. ------
----------सतनाशक७५ विभाम.---------
-------------- नवनाशक ६२ विभाम- - . --
शिखरका भद्रका पाँच सप्त नव नाशक अब मैं सप्तनाशिक कहता हूँ । आधा भद्र छः भागका, पहली फालना आठ मागकी, दूसरी फालना ग्यारह भागकी, तीसरी फालना आठ भागकी, मूल नाशक साढ़े चार भागकी छठ्ठी और सातवीं फालनाएँ नाम मात्रकी करना । (फालनाके निकालेको आगेके अनुसार रखना ।) सप्त नाशिकके कुल पचहत्तर . (७५) भाम जानना । ५-६.
नवनाशिक प्रवक्ष्यामि भद्रार्ध मेकत्रिंशतम् ।
एक भागं द्विभागं वा वेदभागं तृतीयकम् ॥७॥ का थोडा विषय छोडकर श्लोक १४ से २६ तकके बहुत ही अशुद्ध और विषयान्तर वाले पाठ मूल प्रतोंमें हैं, जिनमें से हम अर्थ नहीं निकाल सके हैं। इसके लिये सुज्ञ वाचकगण क्षमा करें, और पुरानी अशुद्ध प्रतोंका क्रम असम्बद्ध विषयोंके कारण मूल पाठको कायम रखकर ग्रंथका संकलन करनेके लिये वाचकों की हम क्षमा माँगते हैं। श्लोक २३ से २६ के चार लोकका ११२ एकसौ बारहवाँ अध्याय पुरानी प्रतोंमें गियाये हुए हैं। :