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सावो मे रीते सिंहासन मंडित २. १३-१४-१५-१६-१७.
- ८-भाग
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५॥
भाग ३०
पीठिका = सिंहासन कर्मिकार्य अंतर क्योनाचा सभ्भयडीफ) ]
उदय
२॥ १ २ २
३॥ किटगरिको संबंध
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क्षीरार्णव अ. - ११० क्रमांक अ.-१२
प्रभाशंकर ओ० स्थयति.
देवस्थापनकी नीचेकी पीठिका - सिंहासनकी ऊचाई ( जिस भागमें आवें उसके ) के तीस भाग करना । इनमें एक भाग भूमिमें - तीन भाग कटपट्टी, आधे भागकी मुखपट्टी, साढ़े तीन भागका स्थंध ( गलता - जाडंबा ) करना ( उममेंसे आधे भागका कंद निकालना । ) उसके पर आधे भागकी अंधारी, उसके कणी ढ़ाओ भागकी, उसके पर एक भागकी चिपिका करना । उसके पर दो भागका अंतरपत्र- करना केवाल ढाओ भागका, उसके पर ग्रासपट्टी साढ़े पाँच भागकी विधिसे करना | आधे भागकी मुखपट्टी अंधारी करना । तीन भागकी कर्णी
पर
ओथयति
देव सिंहासनः पीठ - उदय विभाग
करना, उसके पर आधे भागकी स्कंधपट्टी-कंद और सबसे उपर स्कंधक गलता चार भागका करना । इन सब स्तरोंमें अंतरपत्रसे कंठपट्टीके घाटको आठ भाग गहरा बिठाना इसीतरह सिंहासनको अंकित करना । १३-१४-१५-१६-१७.
इति श्री विश्वकर्मा कृते श्रीरार्णवे नारद पृच्छीयां प्रतिमा लिङ्गपीठ मानधिकारे शताये दशमोऽध्याय ॥ ११० ॥ क्रमांक अ० १२
ઈતિ શ્રી વિશ્વકર્માં વિરચિત ક્ષીરાવે નારદમુનિના સ્વાદરૂપ પ્રતિમા, લિંગ અને પીઠના માના અધિકાર શિલ્પ વિશારદ સ્થપતિ શ્રી પ્રભાશ`કર એઘડભાઈ સોમપુરાએ રચેલી સુપ્રભા નામની ભાષા ટીકાના એકસો દશમા અધ્યાય-૧૧૦ ક્રમાંક અ૦ ૧૨
इति श्री विश्वकर्मा विरचित क्षीरार्णव में नारदमुनिके संवादरूप प्रतिमा, लिङ्ग और पीठके मानका अधिकार शिल्पविशारद स्थपति श्री प्रभाशंकर ओघडभाई सोमपुराकी रची हुआ सुप्रभा नामकी भाषा टीका का अकसौ दसवाँ अध्याय | ॥११०॥ ( क्रमांक अ० १२ )