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क्षीरार्णव अ.-१०८ क्रमांक अ.-१० પ્રહાર (પહારૂને થર) ચડાવો. ત્યાંથી શિખરને પ્રારંભ કરે. બુદ્ધિમાન શિલ્પીઓ આડત્રીશ હાથના પ્રાસાદને સર્વલક્ષણ સંયુક્ત એવી પાંચ ભૂમિકા કરવી. છજા ઉપર ભૂમિ એમ ૪૦ હાથના પ્રાસાદને ચડાવતા જવું એ રીતે ચડાવતાં પહેલાં માચીને થર ચડાવી તે પર જંઘા એમ બાર જંઘા સુધી ચડાવતાં જવું. ૧૩ થી ૧૭,
हे मुनी, अव पैतीस हाथका सांधार " प्रासाद हो तो उसे चार भूमि मजले करना, - यह बात एकाग्रतासे सुनो। (प्रत्येक मजलेके 3. अंतमें ) केवाल और छाद्य चढ़ाये हो और. 4 जो उपरकी भूमि चढ़ानी हो तब उस केवाल
और छाद्य के थरोंको बार बार छोड़कर भर" णीके उपर माची वगैरह (जंघा उद्गम भरणी) ॐ चढाना | उत्तरोत्तर जंघा और डेढियेके थर 4 विभाग ज्यों ज्यों उपर जाय त्यों त्यों कम
भागके करते जाना । उपरके मजलेके शेष थर छज्जा पर प्रहार (पहारुका थर) का थर जढाना । (यहाँसे शिखरका प्रारंभ करना ।) 'बुद्धिमान शिल्पीको अडतीस हाथ के प्रासादको 1 सर्व लक्षण संयुक्त एसी पाँच भूमिकाएं
बनाना । छज्जेके उपर भूमिको चढानेसे पहले माचीका थर चढ़ाकर उसके पर जंधा इस तरह बारह जंघा तक चढाते जाना । चालीस हाथ उदयका प्रासादका.....,
मेरु महामंडोवर
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चतुश्यादा भाग १४०
- महर२ त्रयभूमि-त्रयजंघा द्वय छजा. समस्त भाग
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...रंध्रते भूमिका क्रमात् ॥१८॥ कुंभिकादि प्रहारांत विभागं तत्र निश्चलं ।'
यदि जंघा भवेत्श्चैकं द्विदशयावत् तथा ॥१९॥ +-महामंडोवर त्रय जंघा त्रयभूमिद्वय छज्जा समस्तभाग ३७७
३ सतमष्टोतरं तथा १९॥ पाठान्तर