________________
७७
अथ मंडोवर थर विभाग તથા પાંચ ભાગને પટ્ટ તે ઉપર બાર ભાગનું છજું કરવું. (એ ત્રણ ભૂમિઉદયને બે છાઘવાળ) મહામડેવર સર્વ કામનાને ફળદાતા જાણે, પ-૬-૭
___ आगे नागरादि मंडोवर १४४ भागका कहा, लेकिन जो दो-तीन भूमिके मेंरू मंडोवर की रचना करनी हो तो आगे कहे हुये भरणी तक के नौ थरके विभाग ११०॥ ऊपर दूसरी भूमिके थरवाले कहते है। ખરે ૫
भरणीके पर आठ भागकी माची, पच्चीस भाग ला २०
की जंघा तेरह भागका दोडिया, आठ भागकी भरणी, अशी ८
और उसके पर आगे श्लोक तीसरसे कहे हुए थर फिर અંતરાળ ૨ા
चड़ाना । अर्थात् दस भाग शिरायटी, आठ भागके महावाल
केवाल, ढाई भागका अंतराल और तेरह भागका छज्जाજંધા ૩૫
ये मिलकर ८७॥ भाग हुए। इससे ११०१।+८७-१९८ ઉગમ ૧૫
भाग हुए। दूसरी भूमि तकका उदय जानना । ભરણી ૮
अब तीसरी भूमिके भाग महामंडोवर के कहते શીરાવટી ૧૦ ૧૧
हैं। छज्जे पर फिर सात भागकी माची, सोलह भागकी મહાકેવાલ ૮ ૮ મંચિકા
जंघा, सात भागकी भरणी, चार भागकी शिराघट तथा અંતરાળ રા ૨૫ જંધા ७०० 13 13 हम पाच भागक पट्ट, उसके पर बारह भागका छज्जा करना ।
भरली असे (तीन भूमि उदय के दो छायवाले) महा मंडोवरको 1४४
१० शी।वटी सर्वकामना और फलके दाता जानना । ५-६-७.
૮ મહાકવાળ २॥ अत॥ कुंभकस्य युगांशेन स्थावसणां प्रवेशकं ॥८॥ 139
इति मेरु मंडोवर ૧૯૮ ૭ માચી,
મંડેવરના કુંભા આદિ થર (છજા સિવાયના ૧૬ અંધા ઓળંભે કરવા. તે થરના ઘાટની ઊંડાઈ ચાર ભાગ
૭ ભરણી સુધી રાખવી. ૮ ૪ શીરાવટ
कुंभा आदि थर (छज्जेके सिवा) ओलंभे पर करना। १२ 29 उन थरोंक घाटकी गहराई चार भाग तककी रखना ८. મહામેરૂ મં૦ ૨૪૯
इति मेरु मंडोवर भाग २४९ । पुनः दधाभवेत्बंधामंन्चिका स्वमानकधाः ।
खुरकं 'स्थरखुटछाध निर्गमं पीठ मध्यतः ॥९॥ ઉપર ભૂમિ કરવાને ફરી જંઘા ચડાવવાને માચીને થર પિતાના માનથી ભાગે ચડાવવા. ખરા આદિ રે ઓળભે સ્થિર અને ઉપરનું છજુ પીથી કાંઈક નમતું કરવું. ૯.
ऊपर भूमि करनेके लिये, फिर जंघा चढाने के लिये, माचीका थर अपने मानके भागमें चढाना । खरा आदि थरोंको ओलंभेपर स्थिर रखना और ऊपरका छज्जा ठसे 'कुछ निकलता करना । ९.