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________________ है । वे मंदिर, रथ, मूर्ति और काष्ट वगैरहका काम करते हैं । गायत्री आदि का नित्यपाठ करते हैं। मृत्युके बाद अग्निसंस्कार करते हैं। आंध्रमें श्रीकाकुलम् लक्ष्मीपुरम्में उदुपुडु नामकी शिल्पीओंकी जाति थी। उसके दो चार घर वहाँ थे । उन लोगोंके पास " सारस्वती विश्वकर्मायम” नामका ग्रंथ था। उनका अस्तित्र अभी नहीं मिलता है। यह परिवार शिल्पकार्यके अभावमें अन्य व्यवसायमें पड़ा हुआ मालुम पडता है। ५ तैलंगणमें विश्वकर्मा शिल्पी बसते हैं । वे शिल्पग्रंथका रक्षण करते हैं। मंदिर और मूर्तिका काम करते हैं । काष्ट और लोहका काम भी करते हैं । करीब तीन सौ सालसे मुस्लीम राज्य प्रदेशोंमें रहनेसे सहबास दोषसे मांसाहार करते हैं । तो भी उनका ब्रह्मत्व कम नहीं हुआ है । गायत्री पाठ पूजा आदि करते हैं । यज्ञोपवित धारण करते हैं। किसी भी उच्च जातिके ब्राह्मणके हाथका भोजन भी लेते नहीं हैं । उपरोक्त पंचाननज्ञातिमें वे नहीं गिने जाते हैं । मृत्युके बाद अग्निसंस्कार भी करते हैं । कर्णाटक मैसुरमें कन्नडी भाषा-मद्रास प्रदेशमें तमिल-केरालामें मलयालम और आंध्र जैलंगण प्रदेशमें तेलुगु भाषाका व्यवहार लोगोंमें है । उनके शिल्पग्रंथ संस्कृत नागरी लिपीके बदले उनकी लिपीमें लिखे हुए हैं । ६ जयपुर अलवरके प्रदेशोंमें गौड ब्राह्मणों की जातिके शिल्पीओं विशेषकर प्रतिमाका कुशल काम करते हैं। मंदिरोका निर्माण भी करते हैं। यज्ञोपवित विधिसे धारण करते हैं । शुद्ध शाकाहारी हैं। उनमेंसे की देहातोंमें कृषिकर्म भी करते हैं । मृत्युके बाद अग्नि संस्कारका रिवाज है। मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में कभी भागों में 'जांगड ' नामकी जाति अपनेको शिल्पीवर्गमें गिनती है । उनमें कभी सादा पाषाणकर्म, काष्टकम, चित्रकर्म और लोहकर्म करते हैं । की देहातोंमें कृषिकर्म भी करते हैं । विश्वकर्माको अपने इष्टदेव मानते हैं । जांगडमें कश्री यंत्रविद्यामें कुशल हैं, जिस तरह गुजरातमें पंचाल जाति है। ___ ७ गुजरात सौराष्ट्र और कच्छमें वैश्य, मेवाडा, गुर्जर, पंचोली जाति काष्टकममें प्रवीण है । पाँचवीं पंचाल जातिके शिल्पीओं लोहारका काम करते हैं । वे सब विश्वकर्माको अपने इष्टदेव मानते हैं । आगेकी चारों जातियों के शिल्पी सुथारी काम रथकाम देवमंदिरोंके साधनों वगैरह चांदीका अलंकृत काम करते हैं। पंचालभाइओं लोहकर्ममें और यंत्र विद्यामें भी 'जांगड' जातिकी
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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