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________________ क्षीरार्णव अ..१०१ क्रमांक -३ A કુર્મશિલામાન મજ આ ANET - ho) AIMEENA म WA ४.---१० ५--१२ -१४ ७-१९ ८-१८ ८-२० १०-२२ २०--३२ 30---३७ ४१-४२ ५०-४७ AAR १ जापान SHANTYELIMBUM स पंचमुख-दशभूज महाविश्वकर्मा उर्व तोरण पक्षे विरालिका युक्त परिकर नीम्न-जय-मय-त्वष्टा और अपराजित (૬) કુર્મશિલા ગર્ભગૃહના મધ્યમાં પધરાવવાનું સાધારણ રીતે કહ્યું છે. પરંતુ आणवि अथमा श्री विश्वनाम मशिक्षा मारे ज्यु छ अर्ध पादे त्रिभागे वा शिलाचैव प्रतिष्यो । गलन अ भा है गहना याथा माग त्र मागे पाए शिक्षा મતિષ્ઠિત કરવી. આમ કહેવાને હેતુ છે. શિવલિંગ હોય તે મધ્યમાં પધરાવે ત્યાં કૂર્મશિલા મધ્યમાં પારાવી વિષ્ણુ આદિ દેવોના સ્થાપના વિભાગ કહ્યા છે ત્યાં તેની નીચે કૂર્મશિલા પદ્માવવી તે એમ છે. કૂર્મ શિલા પરની નાભિ બ્રહ્મરંધ્ર દેવ પ્રતિમા નીચે બરાબર આવી શકે. एक मज पर आधे बैंगुलका मान कहा है। मध्यकी कूर्मशिला रखकर चाँरीके कर्मको स्थापित कर उसके पर नाभिका भुंगला-पाईप खडा किया जाता है। और मासिके उपर मुख्य प्रभु बिराजमान हो वहाँ नीचे तक लंबाया जाता है। (ड) सामान्यतया कूर्मशिलाको गर्भगृह के मध्यमें पधरानेके लिये कहा गया है। पांच वीपार्णव ग्रंथमें श्री विश्वकर्माने कूर्मशिलाके लिये कहा है कि अर्धपादे त्रिभागेवा शिलाबैल प्रतियेत् ।' गर्भगृहके आधे भागमें या चौथे भागमें या तीसरे भागमें भी कूर्मथिलाम प्रतिष्ठित करना। इस कथनका तात्पर्य यह है कि शिवलिश हो तो मध्यमें पधरावें वहाँ
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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