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________________ प्रिय विज्ञ महानुभाव पाठक वृन्दः आपको यह जानकर हर्ष होगाकि अपने जैनधर्ममें आजतक गीता जैसे ग्रंथका अवश्यही अभावथा. जिसकी पूर्ति आज आप महानुभावोंके समक्ष यह "अर्हद्गीता” नामक गीताग्रंथ प्रकाशित करवाके की जारही है? 5 वैष्णव धर्ममें भगवद्गीताको कितना मान है। अहंगीताभी मानव समुदायकेलिये वैष्णव भगद्गीतासे कहीं अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है. यदि विज्ञपाठकोंने इसे आदरकी रष्टीसे अपनाया तो। क्योंकि यह अहंद्गीता जिस अध्यात्मज्ञानरूपी सुधारससे ओतप्रोत हैं यह अद्वितीय है? श्रीगौतमस्वामि प्रथमही प्रश्न करते है कि भगवान योगियों और गृहस्थोंका मन वशमें हो जाता है तो क्या कोई इसकी विधि है ? उत्तरमें-भगवान महावीर विधि बतलाते हुए क्या कहते हैं. यह ग्रंथकी आदिमें आपके दृष्टीगोचर हैं ? | महामहोपाध्याय श्री मेघविजयजी गणीके समयका निर्णय. विक्रम संवत १७४७ में धर्मपुरमें "मातृकाप्रसाद" इस नामका ग्रंथ जिसमें “ॐ नमः सिद्धं" इसका बडाही भावपूर्ण रसात्मक विवरण है। इसीसे समय निर्णीत है.
SR No.008408
Book TitleArhadgita Bhagvadagita ya Tattvagita
Original Sutra AuthorMeghvijay
Author
PublisherMahavir Granthmala
Publication Year
Total Pages86
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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