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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] जीव-अधिकार [ ज्ञान] शुद्धस्वरूपका प्रत्यक्ष जानपना, [ चारित्र] शुद्धस्वरूपका आचरण- ऐसे कारण करने से [ साध्य] सकल कर्मक्षयलक्षण मोक्षकी [ सिद्धिः] प्राप्ति होती है।भावार्थ इस प्रकार है कि शुद्धस्वरूपका अनुभव करनेपर मोक्षकी प्राप्ति है। कोई प्रश्न करता है कि इतना ही मोक्षमार्ग है कि कुछ और भी मोक्षमार्ग है ? उत्तर इस प्रकार है कि इतना ही मोक्षमार्ग है। ''न च अन्यथा' [च] पुनः [अन्यथा ] अन्य प्रकारसे [ न ] साध्यसिद्धि नहीं होती।। १९ ।। [मालिनी] कथमपि समुपात्तत्रित्वमप्येकतायाः अपतितमिदमात्मज्योतिरुद्गच्छदच्छम्। सततमनुभवामोऽनन्तचैतन्यचिह्न न खलु न खलु यस्मादन्यथा साध्यसिद्धिः ।। २०।। [हरिगीत] त्रैरूपता को प्राप्त है पर ना तजे एकत्व को। यह शुद्ध निर्मल आत्म ज्योति प्राप्त है जो स्वयं को।। अनुभव करें हम सतत ही चैतन्यमय उस ज्योति का। क्योंकि उसके बिना जग में साध्य की हो सिद्धिना।।२०। खंडान्वय सहित अर्थ:- "इदम् आत्मज्योतिः सततम् अनुभवामः'' [इदम् ] प्रगट [आत्मज्योतिः] चैतन्यप्रकाशको [ सततम्] निरंतर [ अनुभवामः] प्रत्यक्षरूपसे हम आस्वादते हैं। कैसी है आत्मज्योति? "कथमपि समपात्तत्रित्वम अपि एकतायाः अपतितम' [कथम अपि] व्यवहारदृष्टिसे [ समुपात्तत्रित्वम् ] ग्रहण किया है तीन भेदों को जिसने ऐसी है तथापि [ एकतायाः] शुद्धतासे [अपतितम्] गिरती नहीं है। और कैसी है आत्मज्योति ? 'उद्गच्छत्'' प्रकाशरूप परिणमती है। और कैसी है ? "अच्छम्' निर्मल है। और कैसी है ? 'अनन्तचैतन्यचिहूं' [अनन्त] अति बहुत [चैतन्य ] ज्ञान है [ चिहूं ] लक्षण जिसका ऐसी है। कोई आशंका करता है कि अनुभवको बहुतकर दृढ़ किया सो किस कारण ? वही कहते हैं-“यस्मात् अन्यथा साध्यसिद्धिः न खलु न खलु' [ यस्मात् ] जिस कारण [अन्यथा ] अन्य प्रकार [ साध्यसिद्धिः] स्वरूपकी प्राप्ति [ न खलु न खलु ] नहीं होती नहीं होती , ऐसा निश्चय है।। २० ।। [ मालिनी] कथमपि हि लभन्ते भेदविज्ञानमूलामचलितमनुभूतिं ये स्वतो वान्यतो वा। प्रतिफलननिमग्नानन्तभावस्वभावैर्मुकुरवदविकाराः सन्ततं स्युस्त एव।।२१।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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