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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द भावार्थ इस प्रकार है कि अनादि कालका मिथ्यादृष्टि ही जीव काललब्धिके प्राप्त होनेपर सम्यक्त्वके ग्रहणकाल के पूर्व तीन करण करता है। वे तीन करण अन्तर्मुहूर्तमें होते हैं। करण करनेपर द्रव्यपिंडरूप मिथ्यात्वकर्मकी शक्ति मिटती है। उस शक्तिके मिटनेपर भावमिथ्यात्वरूप जीवका परिणाम मिटता है। जिस प्रकार धतूराके रसका पाक मिटनेपर गहलपना मिटता है। कैसा है बंध अथवा मोह ? ""भूतं भान्तम् अभूतम् एव'' [ एव] निश्चयसे [भूतं] अतीत कालसंबंधी , [ भान्तम्] वर्तमान कालसंबंधी, [अभूतम् ] आगामी कालसंबंधी। भावार्थ इस प्रकार है - त्रिकाल संस्काररूप है जो शरीरादिसे एकत्वबुद्धि उसके मिटनेपर जो जीव शुद्ध जीवको अनुभवता है वह जीव निश्चयसे कर्मोसे मुक्त होता है।। १२।। [वसन्ततिलका] आत्मानुभूतिरिति शुद्धनयात्मिका या ज्ञानानुभूतिरियमेव किलेति बुद्ध्वा। आत्मानमात्मनि निवेश्य सुनिष्प्रकम्पमेकोऽस्ति नित्यमवबोधघनः समन्तात्।।१३।। [रोला] निक्षेपों के चक्र विलय नय नहीं जनमते। अर प्रमाण के भाव अस्त हो जाते भाई।। अधिक कहें क्या द्वैतभाव भी भासित ना हो। शुद्ध आतमा का अनुभव होने पर भाई।।१३।। खंडान्वय सहित अर्थ:- ''आत्मा सुनिष्प्रकम्पम् एकोऽस्ति'' [आत्मा] चेतन द्रव्य [ सुनिष्प्रकम्पम् ] अशुद्ध परिणमनसे रहित [एक: ] शुद्ध [ अस्ति] होता है। कैसा है आत्मा ? "नित्यं समन्तात् अवबोधघनः'' [नित्यम्] सदा काल [समन्तात् ] सर्वाङ्ग [अवबोधघनः] ज्ञानगुणका समूह है- ज्ञानपुंज है। क्या करके आत्मा शुद्ध होता है ? "आत्मना आत्मनि निवेश्य'' [आत्मना] अपनेसे [आत्मनि] अपने ही में [ निवेश्य] प्रविष्ट होकर। भावार्थ इस प्रकार है कि आत्मानुभव परद्रव्यकी सहायतासे रहित है। इस कारण अपने ही में अपनेसे आत्मा शुद्ध होता है। यहाँ पर कोई प्रश्न करता है कि इस अवसरपर तो ऐसा कहा कि आत्मानुभव करनेपर आत्मा शुद्ध होता है और कहींपर यह कहा है कि ज्ञानगुण-मात्र अनुभव करनेपर आत्मा शुद्ध होता है सो इसमें विशेषता क्या है ? उत्तर इस प्रकार है कि विशेषता तो कुछ भी नहीं है। वही कहते हैं- "या शुद्धनयात्मिका आत्मानुभूतिः इति किल इयम् एव ज्ञानानुभूतिः इति बुढा'' [या] जो [ आत्मानुभूतिः] आत्म-अनुभूति अर्थात् आत्मद्रव्यका प्रत्यक्षरूपसे आस्वाद है। कैसी है अनुभूति ? [शुद्धनयात्मिका] शुद्धनय अर्थात् शुद्ध वस्तु सो ही है आत्मा अर्थात् स्वभाव जिसका ऐसी है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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