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यह तो मैं पूर्व में ही लिख आया हूँ कि यह टीका ढूँढारी भाषामें लिखी गई है। सर्व प्रथम मूल रूप में इसके प्रचारित करने का श्रेय श्रीमान् सेठ नेमीचंद बालचंद ज िवकील उसमानाबादवालोंको है। यह वीर सं. २४५७ में स्व श्रीमान् ब्र. शीतलप्रसाद जी के आग्रह से प्रकाशित हुई थी। प्रकाशक श्री मूलचंद किसनदास जी कपाड़िया [ दि . जैन पुस्तकालय] सूरत है। झीमान् नेमचंदजी वकील से मेरा निकट का सम्बन्ध था। वे उदाराशय और विद्याव्यासंगी विचारक वकील थे। अध्यात्ममें तो उनका प्रवेश था ही, कर्मशास्त्रका भी उनहें अच्छा ज्ञान था। उनकी यह सेवा सराहनीय है। मेरा विश्वास है कि बहुजन प्रचारित हिन्दी में इसका अनुवाद हो जाने के कारण अध्यात्म जैसे गूढ़तम तत्वके प्रचार में यह टीका अधिक सहायक होगी। विज्ञेषु किमधिकम् ।
फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री
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