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कहान जैन शास्त्रमाला]
स्याद्वाद-अधिकार
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अवसर पाकर कहेंगे। अथवा पर्यायरूप माने बिना वस्तुमात्र माननेपर वस्तुमात्र भी नहीं सधती है। वहाँ भी अनेक युक्तियाँ हैं। अवसर पाकर कहेंगे। इसी बीच कोई मिथ्यादृष्टि जीव ज्ञानको पर्यायरूप मानता है, वस्तुरूप नहीं मानता है। ऐसा मानता हुआ ज्ञानको ज्ञेयके सहारेका मानता है। उसके प्रति समाधान इस प्रकार है कि इस प्रकार तो एकान्तरूपसे ज्ञान सधता नहीं। इसलिए ज्ञान अपने सहारेका है ऐसा कहते हैं- "पशो: ज्ञानं सीदति"[पशोः] एकान्तवादी मिथ्यादृष्टि जैसा मानता है कि ज्ञान पर ज्ञेयके सहारेका है, सो ऐसा माननेपर [ज्ञानं] शुद्ध जीवकी सत्ता [ सीदति] नष्ट होती है अर्थात् अस्तित्वपना वस्तुरूपताको नहीं पाता है। भावार्थ इस प्रकार है कि एकान्तवादीके कथनानुसार वस्तुका अभाव सधता है, वस्तुपना नहीं सधता। कारण कि मिथ्यादृष्टि जीव ऐसा मानता है। कैसा है ज्ञान ? "बाह्याथैः परिपीतम्'' [बाह्याथैः] ज्ञेय वस्तुके द्वारा [ परिपीतम्] सर्व प्रकार निगला गया है। भावार्थ इस प्रकार है कि मिथ्यादृष्टि जीव ऐसा मानता है कि ज्ञान वस्तु नहीं है, ज्ञेयसे है। सो भी उसी क्षण उपजता है, उसी क्षण विनशता है। जिस प्रकार घटज्ञान घटके सद्भावमें है। प्रतीति इस प्रकार होती है कि जो घट है तो घटज्ञान है। जब घट नहीं था तब घटज्ञान नहीं था। जब घट नहीं होगा तब घटज्ञान नहीं होगा। कोई मिथ्यादृष्टि जीव ज्ञानवस्तुको बिना माने ज्ञानको पर्यायमात्र मानता हुआ ऐसा मानता है। और ज्ञानको कैसा मानता है"उज्झितनिजप्रव्यक्तिरिक्तीभवत्'' [ उज्झित] मूलसे नाश हो गया है [निजप्रव्यक्ति] ज्ञेयके जानपनेमात्रसे ज्ञान ऐसा पाया हुआ नाममात्र, उस कारण [रिक्तीभवत् ] ज्ञान ऐसे नामसे भी विनष्ट हो गया है ऐसा मानता है मिथ्यादृष्टि एकान्तवादी जीव। और ज्ञानको कैसा मानता है - "परितः पररूपे एव विश्रान्तं'' [ परितः] मूलसे लेकर [पररूपे] ज्ञेय वस्तुरूप निमित्तमें [ एव ] एकान्तसे [विश्रान्तं] विश्रान्त हो गया-ज्ञेयसे उत्पन्न हुआ, ज्ञेयसे नष्ट हो गया। भावार्थ इस प्रकार है कि जिस प्रकार भींतमें चित्राम जब भींत नहीं थी तब नहीं था, जब भींत है तब है, जब भींत नहीं होगी तब नहीं होगा। इससे प्रतीति ऐसी उत्पन्न होती है कि चित्रके सर्वस्वका कर्ता भीत है। उसी प्रकार जब घट है तब घटज्ञान है, जब घट नहीं था तब घटज्ञान नहीं था, जब घट नहीं होगा तब घटज्ञान नहीं होगा। इससे ऐसी प्रतीति उत्पन्न होती है कि ज्ञानके सर्वस्वका कर्ता ज्ञेय है।
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