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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates %% %%%%%%%%%%%%%%%%%%%% -८ बंध अधिकार 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 [शार्दूलविक्रीडित] रागोद्गारमहारसेन सकलं कृत्वा प्रमत्तं जगत् क्रीडन्तं रसभावनिर्भरमहानाट्येन बन्धं धुनत्। आनन्दामृतनित्यभोजि सहजावस्थां स्फुटन्नाटयद्धीरोदारमनाकुलं निरुपधि ज्ञानं समुन्मज्जति।।१-१६३ ।। [हरिगीत] मदमत्त हो मदमोह में इस बंध ने नर्तन किया। रसराग के उद्गार से सब जगत को पागल किया।। उदार अर आनन्दभोजी धीर निरूपधि ज्ञान ने। अति ही अनाकुलभाव से उस बंध का मर्दन किया।।१६३ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "ज्ञानं समुन्मजति'' [ज्ञानं] शुद्ध जीव [ समुन्मज्जति] प्रगट होता है। भावार्थ - यहाँ से लेकर जीवका शुद्ध स्वरूप कहते है। कैसा है शुद्ध ज्ञान ? ''आनन्दामृतनित्यभोजि'' [ आनन्द ] अतीन्द्रिय सुख, ऐसा है [अमृत] अपूर्व लब्धि, उसका [ नित्यभोजि] निरंतर आस्वादनशील है। और कैसा है ? " स्फुटं सहजावस्थां नाटयत्'' [ स्फुटं] प्रगटरूपसे [ सहजावस्थां] अपने शुद्ध स्वरूपको [नाटयत्] प्रगट करता है। और कैसा है ? "धीरोदारम्" [धीर] अविनश्वर सत्तारूप है। [ उदारम्] धाराप्रवाहरूप परिणमनस्वभाव है। और कैसा है ? "अनाकुलं'' सर्व दुःखसे रहित है। और कैसा है ? ''निरुपधि'' समस्त कर्मकी उपाधिसे रहित है। क्या करता हुआ ज्ञान प्रगट होता है ? "बन्धं धुनत्'' [बन्धं ] ज्ञानावरणादि कर्मरूप पुद्गलपिण्डका परिणमन, उसको [धुनत्] मेटता हुआ। कैसा है बन्ध ? "क्रीडन्तं'' प्रगटरूपसे गर्जता है। किसके द्वारा क्रीड़ा करता है ? "रसभावनिर्भरमहानाट्येन'' [ रसभाव] समस्त जीवराशिको अपने वशकर उत्पन्न हुआ जो अहंकारलक्षण गर्व, उससे [ निर्भर ] भरा हुआ जो [ महानाट्येन] अनंत कालसे लेकर अखाड़े का सम्प्रदाय, उसके द्वारा। क्या करके ऐसा है बंध ? ''सकलं जगत् प्रमत्तं कृत्वा'' [ सकलं जगत् ] सर्व संसारी जीवराशिको [प्रमत्तं कृत्वा] जीवके शुद्ध स्वरूपसे भ्रष्ट कर। किसके द्वारा ? "रागोद्गारमहारसेन'' [ राग] राग-द्वेष-मोहरूप अशुद्ध परिणतिका [ उद्गार] अति ही अधिकपना, ऐसी जो [ महारसेन] मोहरूप मदिरा, उसके द्वारा। भावार्थ इस प्रकार है - जिस प्रकार किसी जीवको मदिरा पिलाकर विकल किया जाता है, सर्वस्व छीन लिया जाता है, पदसे भ्रष्ट कर दिया जाता है उसी प्रकार अनादि कालसे लेकर सर्व जीवराशि राग-द्वेष-मोहरूप अशुद्ध परिणामसे मतवाली हुई है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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