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समयसार-कलश
[ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द
किस कारण से ? "द्रव्यान्तरस्वभावत्वात्'' [द्रव्यान्तर] आत्मद्रव्यसे भिन्न पुद्गलद्रव्य, उसके [स्वभावत्वात् ] स्वभावरूप होनेसे अर्थात् यह सब पुद्गलद्रव्यके उदयका कार्य है, जीवका स्वरूप नहीं है। भावार्थ इस प्रकार है - शुभ-अशुभ क्रिया, सूक्ष्म-स्थूल अंतर्जल्प-बहिर्जल्परूप जितना विकल्परूप आचरण है वह सब कर्मका उदयरूप परिणमन है, जीवका शुद्ध परिणमन नहीं है, इसलिए समस्त ही आचरण मोक्षका कारण नहीं है, बंधका कारण है।। ८-१०७।।
[अनुष्टुप] मोक्षहेतुतिरोधानाद्वन्धत्वात्स्वयमेव च। मोक्षहेतुतिरोधायिभावत्वात्तन्निषिध्यते।।९-१०८।।
[दोहा] बंधस्वरूपी कर्म यह शिवमग रोकन हार । इसी लिए आध्यात्म में है निषिद्ध शतवार।।१०८ ।।
खंडान्वय सहित अर्थ:- यहाँ कोई जानेगा कि शुभ-अशुभ क्रियारूप जो आचरणरूप चारित्र है सो करने योग्य नहीं है उसी प्रकार वर्जन करने योग्य भी नहीं है ? उत्तर इस प्रकार है – वर्जन करने योग्य है। कारण कि व्यवहारचारित्र होता हुआ दुष्ट है, अनिष्ट है, घातक है, इसलिए विषयकषायके समान क्रियारूप चारित्र निषिद्ध है ऐसा कहते हैं - "तत् निषिध्यते'' [ तत्] शुभअशुभरूप करतूति [कृत्य] [निषिध्यते] तजनीय है। कैसा होनेसे निषिद्ध है ? "मोक्षहेतुतिरोधानात्'' [मोक्ष ] निष्कर्म अवस्था, उसका [हेतु] कारण है जीवका शुद्धरूप परिणमन उसका [तिरोधानात्] घातक ऐसा है। इसलिए करतूति निषिद्ध है। और कैसा होनेसे ? "स्वयम् एव बन्धत्वात्'' अपने आप ही बंधरूप है। भावार्थ इस प्रकार है - जितना शुभ-अशुभ आचरण है वह सब कर्मके उदयके कारण अशुद्धरूप है, इसलिए त्याज्य है, उपादेय नहीं है। और कैसा होनेसे ? ''मोक्षहेतुतिरोधायिभावत्वात्'' [ मोक्ष ] सकल कर्मक्षयलक्षण परमात्मपद, उसका [हेतु] जीवका गुण जो शुद्ध चेतनारूप परिणमन उसका [ तिरोधायि] घातनशील ऐसा है [भावत्वात् ] सहज लक्षण जिसका , ऐसा है इसलिए कर्म निषिद्ध है। भावार्थ इस प्रकार है – जिस प्रकार पानी स्वरूपसे निर्मल है, कीचड़के संयोगसे मैला होता है- पानीका शुद्धपना घाता जाता है उसी प्रकार जीवद्रव्य स्वभावसे स्वच्छ स्वरूप है - केवलज्ञान-दर्शन-सुख-वीर्यरूप है। वह स्वच्छपना विभावरूप अशुद्ध चेतनालक्षण मिथ्यात्व विषय-कषायरूप परिणामके कारण मिटा है। अशुद्ध परिणामका ऐसा ही स्वभाव है जो शुद्धपनाको मेटे, इसलिए समस्त कर्म निषिद्ध है। भावार्थ इस प्रकार है – कोई जीव क्रियारूप यतिपना पाते हैं, उस यतिपनेमें मग्न होते हैं- जो हमने मोक्षमार्ग पाया, जो कुछ करना था सो किया, सो उन जीवों को समझाते हैं कि यतिपनाका भरोसा छोड़कर शुद्ध चैतन्यस्वरूपको अनुभवो।। ९-१०८ ।।
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