SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 600
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट ५८१ नीरूपात्मप्रदेशप्रकाशमानलोकालोकाकारमेचकोपयोगलक्षणा स्वच्छत्वशक्तिः । यद्यपि दृशि और ज्ञानशक्ति में देखने-जानने की बात आ गई थी; तथापि सबको देखने-जानने की बात नहीं आई थी। इसकारण ही यहाँ समस्त लोकालोक को देखने-जाननेरूप परिणमित होने की बात को सर्वदर्शित्व और सर्वज्ञत्वशक्ति के रूप में कहा जा रहा है। इन शक्तियों के नाम से ही बात स्पष्ट हो जाती है कि यहाँ स्वपर सभी को देखने-जानने की बात है; क्योंकि इनके नाम ही सर्वदर्शित्व और सर्वज्ञत्वशक्ति हैं । ध्यान रहे, भगवान आत्मा में ये सभी शक्तियाँ वस्तुरूप से हैं; काल्पनिक नहीं । अत: यह कथन निश्चयनय का है, व्यवहारनय का नहीं । तात्पर्य यह है कि इस भगवान आत्मा में स्वपर को देखनेजानने की शक्ति है - यह बात परमसत्य है । - सर्वदर्शित्व और सर्वज्ञत्वशक्ति की चर्चा के उपरान्त अब स्वच्छत्वशक्ति की चर्चा करते हैं ११. स्वच्छत्वशक्ति इस ग्यारहवीं स्वच्छत्वशक्ति का स्पष्टीकरण आत्मख्याति में इसप्रकार किया गया है। - मूर्ति प्रदेशों में प्रकाशमान लोकालोक के आकारों से मेचक अर्थात् अनेकाकार उपयोग है लक्षण जिसका, वह स्वच्छत्वशक्ति है । जिसप्रकार पौद्गलिक अचेतन दर्पण स्वभावत: ही स्वच्छ होता है, उसके सामने जो भी पौद्गलिक (मूर्तिक) पदार्थ आते हैं; वे सभी पदार्थ बिना किसी भेदभाव के एकसाथ उसमें प्रतिबिम्बित हो जाते हैं, झलक जाते हैं। उसीप्रकार यह भगवान आत्मा भी स्वभाव से अत्यन्त स्वच्छ है, निर्मल है और इसमें भी सभी पदार्थ एकसाथ प्रतिबिम्बित हो जाते हैं, झलक जाते हैं, देख लिये जाते हैं, जान लिये जाते हैं । ध्यान रहे, पौद्गलिक दर्पण में तो मात्र मूर्तिक पुद्गल ही झलकते हैं; किन्तु इस भगवान आत्मा में मूर्तिक पदार्थों के साथ-साथ अमूर्तिक जीव, धर्म, अधर्म, आकाश और काल - ये सभी पदार्थ, इनके गुण तथा उनकी समस्त भूत, भावी और वर्तमान पर्यायें भी प्रतिबिम्बित हो जाती हैं। एक बात और भी है कि दर्पण में तो वही मूर्तिक पदार्थ झलकते हैं; जो उसके सामने आते हैं; परन्तु भगवान आत्मा के स्वच्छ स्वभाव में तो समीपवर्ती, दूरवर्ती, भूतकालीन, वर्तमान एवं भावी, सूक्ष्म और स्थूल सभी पदार्थ एकसाथ एक जैसे स्पष्ट झलक जाते हैं। दर्पण में तो समीपवर्ती पदार्थ स्पष्ट और दूरवर्ती पदार्थ अस्पष्ट झलकते हैं; किन्तु आत्मा में तो समीपवर्ती दूरवर्ती, स्थूलसूक्ष्म, भूतकालीन एवं भावी सभी पदार्थ वर्तमानवत् ही स्पष्ट प्रतिभासित होते हैं। अतः यहाँ दर्पण का उदाहरण मात्र पदार्थों के प्रतिबिम्बित होने तक ही सीमित रखना चाहिए । भगवान आत्मा में पदार्थों के झलकने का जो अद्भुत स्वच्छ स्वभाव है, उसी का नाम स्वच्छत्वशक्ति है ।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy