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________________ परिशिष्ट अरे भाई ! परिणमित ज्ञान आत्मा का लक्षण है और ज्ञान परिणमन ही आत्मा को जानता है। प्रश्न : जब आत्मा में अनन्त गुण हैं तो उसे ज्ञानमात्र क्यों कहा ? क्या ज्ञानमात्र के समान आत्मा को सुखमात्र भी कहा जा सकता है ? उत्तर : नहीं; क्योंकि ज्ञान आत्मा का लक्षण है और लक्षण से ही लक्ष्य की प्राप्ति होती है। आत्मा को ज्ञानमात्र कहने का एकमात्र यही कारण है। 'ज्ञानमात्र' पद के प्रयोग के संदर्भ में दो बातें विशेष ध्यान देने योग्य हैं - १. पहली बात तो यह कि 'ज्ञानमात्र' पद से ज्ञान के साथ अविनाभावी रूप से रहनेवाले गुणों का निषेध इष्ट नहीं है; अपितु पर और विकारी भावों का निषेध ही इष्ट है। २. दूसरी बात यह है कि अनंत गुणों का अखण्ड पिण्ड होने के आधार पर आत्मा को सुखमात्र, वीर्यमात्र आदि न कहकर ज्ञानमात्र इसलिए कहा गया है कि ज्ञान आत्मा का अव्याप्ति, अतिव्याप्ति और असंभव - इन तीनों दोषों से रहित निर्दोष लक्षण है; आत्मा की पहिचान का चिह्न है। यहाँ एक प्रश्न सहज ही उपस्थित होता है कि यह भगवान आत्मा अनंत शक्तियों का संग्रहालय है; इसमें अनन्त शक्तियाँ उछलती हैं; तो वे अनन्त शक्तियाँ कौन-कौन सी हैं ? अरे भाई ! क्या अनन्त को भी गिनाया जा सकता है ? न सही अनन्त, पर कुछ तो बताइये न ! इसी प्रश्न के उत्तर में आगे ४७ शक्तियों की चर्चा की गई है; जो इसप्रकार है १.जीवत्वशक्ति२.चितिशक्ति३.दृशिशक्ति४.ज्ञानशक्ति५.सुखशक्ति६.वीर्यशक्ति७.प्रभुत्वशक्ति ८. विभुत्वशक्ति ९.सर्वदर्शित्वशक्ति १०.सर्वज्ञत्वशक्ति ११.स्वच्छत्वशक्ति १२. प्रकाशशक्ति १३. असंकुचित-विकासत्वशक्ति १४. अकार्यकारणत्वशक्ति १५. परिणम्य-परिणामकत्वशक्ति १६. त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति १७. अगुरुलघुत्वशक्ति १८. उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्वशक्ति १९.परिणामशक्ति २०.अमूर्तत्वशक्ति २१.अकर्तृत्वशक्ति २२.अभोक्तत्वशक्ति २३.निष्क्रियत्वशक्ति २४.नियतप्रदेशत्वशक्ति २५.स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति २६.साधारण-असाधारणसाधारणासाधारणधर्मत्वशक्ति २७. अनन्तधर्मत्वशक्ति २८.विरुद्धधर्मत्वशक्ति २९. तत्त्वशक्ति ३०. अतत्त्वशक्ति ३१. एकत्वशक्ति ३२. अनेकत्वशक्ति ३३.भावशक्ति ३४. अभावशक्ति ३५.भाव-अभावशक्ति ३६. अभाव-भावशक्ति ३७.भाव-भावशक्ति ३८. अभाव-अभावशक्ति ३९. भावशक्ति ४०.क्रियाशक्ति४१.कर्मशक्ति४२.कर्तृत्वशक्ति४३.करणशक्ति४४.सम्प्रदानशक्ति४५.अपादानशक्ति ४६.अधिकरणशक्ति ४७.संबंधशक्ति। __यद्यपि प्रत्येक शक्ति का स्वतंत्ररूप से अनुशीलन अपेक्षित है; तथापि कुछ ऐसे तथ्य हैं, जो सभी शक्तियों पर समानरूप से घटित होते हैं; इसकारण उनका स्पष्टीकरण आरंभ में ही अपेक्षित है। उक्त तथ्यों के जान लेने से सभी शक्तियों को समझने
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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