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________________ समयसार ५१८ आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ५७. मैं पंचेन्द्रियजाति नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ५८. मैं औदारिकशरीर नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ५९. मैं वैक्रियिकशरीर नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ६०. मैं आहारकशरीर नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ६१. मैं तैजसशरीर नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ६२. मैं कार्मणशरीर नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ६३. मैं औदारिकशरीर-अंगोपांग नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ___ नाहं वैक्रियिकशरीरांगोपांगनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।६४। नाहमाहारकशरीरांगोपांगनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।६५। ___ नाहमौदारिकशरीरबंधननामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।६६। नाहं वैक्रियिकशरीरबंधननामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये।६७। नाहमाहारकशरीरबंधननाकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।६८। नाहं तैजसशरीरबंधननामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।६९। नाहं कार्मणशरीरबंधननामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।७०। नाहमौदारिकशरीरसंघातनामककर्मफलं भुजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।७१। नाहं वैक्रियिकशरीरसंघातनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।७२। नाहमाहारकशरीरसंघातनामकर्मफलं भुजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये।७३। नाहं तैजसशरीरसंघातनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।७४। नाहं कार्मणशरीरसंघातनामकर्मफलं भुंजे, ६४. मैं वैक्रियिकशरीर-अंगोपांग नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ६५. मैं आहारकशरीर-अंगोपांग नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ६६. मैं औदारिकशरीरबंधन नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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