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________________ ४७१ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार हैं? जिसका जो होता है, वह वही होता है। जैसे ज्ञान आत्मा का होने से ज्ञान आत्मा ही है - ऐसा तात्त्विक संबंध जीवित होने से चेतयिता आत्मा यदि पुद्गलादि का हो तो आत्मा को स्वद्रव्योच्छेदः । न च द्रव्यांतरसंक्रमस्य पूर्वमेव प्रतिषिद्धत्वाद्र्व्यस्यात्युच्छेदः । ततो न भवति चेतयिता पुद्गलादेः। यदि न भवति चेतयिता पुद्गलादेस्तर्हि कस्य चेतयिता भवति ? चेतयितुरेव चेतयिता भवति । ननु कतरोन्यश्चेतयिता चेतयितुर्यस्य चेतयिता भवति ? न खल्वन्यश्चेतयिता चेतयितुः, किंतु स्वस्वाम्यंशावेवान्यौ । किमत्र साध्यं स्वस्वाम्यंशव्यवहारेण ? न किमपि । तर्हि न कस्यापि ज्ञायकः, ज्ञायको ज्ञायक एवेति निश्चयः । किंच सेटिकात्र तावच्छ्वेतगुणनिर्भरस्वभावं द्रव्यम् । तस्य तु व्यवहारेण श्वैत्यं कुड्यादिपरद्रव्यमा अथात्र कुड्यादेः परद्रव्यस्य श्वैत्यस्य श्वेतयित्रो सेटिका किं भवति किं न भवतीति तदुभयतत्त्वसम्बन्धोमीमांस्यते - यदि सेटिका कुड्यादेर्भवति तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति । यथात्मनो ज्ञानं भवदात्मैव पुदगलादि ही होना चाहिए और ऐसा होने पर आत्मा के स्वद्रव्य का उच्छेद हो जायेगा; किन्तु द्रव्य का उच्छेद तो होता नहीं; क्योंकि एक द्रव्य का अन्य द्रव्यरूप होने का निषेध तो पहले ही किया जा चुका है। इसप्रकार यह सिद्ध हुआ कि चेतयिता आत्मा पुद्गलादि का नहीं है। अब आगे विचार करते हैं कि चेतयिता आत्मा पुद्गलादि का नहीं है तो किसका है ? यदि यह कहा जाये कि चेतयिता का ही चेतयिता है तो फिर प्रश्न उठता है कि चेतयिता से भिन्न ऐसा दूसरा कौन-सा चेतयिता है कि जिसका यह चेतयिता है ? चेतयिता से भिन्न दूसरा कोई चेतयिता नहीं है; किन्तु वे दो स्व-स्वामीरूप अंश ही हैं - यदि यह कहा जाये तो फिर यह प्रश्न उठता है कि यहाँ स्व-स्वामीरूप अंशों के व्यवहार से क्या साध्य है? तात्पर्य यह है कि कुछ भी साध्य नहीं है। इसप्रकार ज्ञायक किसी का नहीं है; ज्ञायक तो ज्ञायक ही है - यह निश्चय है। इसप्रकार यह बताया गया है कि आत्मा परद्रव्य को जानता है - यह व्यवहार कथन है और आत्मा अपने को जानता है - इस कथन में भी स्व-स्वामी अंशरूप व्यवहार है; निश्चय तो यह है कि ज्ञायक ज्ञायक ही है। जिसप्रकार ज्ञायक पर घटित किया गया; अब उसीप्रकार दर्शक पर भी घटित किया जा रहा है। __ सेटिका अर्थात् कलई श्वेत (सफेद) पदार्थ है और दीवार आदि श्वेत्य (सफेद किये जाने योग्य - पोते जाने योग्य) पदार्थ हैं। अब श्वेत करनेवाली कलई श्वेत किये जाने योग्य दीवाल आदि परद्रव्यों की है या नहीं ? इसप्रकार यहाँ उनके तात्त्विक (पारमार्थिक) संबंध की मीमांसा की जा रही है।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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