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समयसार
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द्रव्यं यदुत्पद्यते गुणैस्तत्तैर्जानीानन्यत् । यथा कटकादिभिस्तु पर्यायैः कनकमनन्यदिह ।।३०८।। जीवस्याजीवस्य तु ये परिणामास्तु दर्शिता: सूत्रे । तं जीवमजीवं तैरनन्यं विजानीहि ।।३०९।। न कुतश्चिदप्युत्पन्नो यस्मात्कार्यं न तेन स आत्मा। उत्पादयति न किंचिदपि कारणमपि तेन न स भवति ।।३१०।। कर्म प्रतीत्य कर्ता कर्तार तथा प्रतीत्य कर्माणि ।
उत्पद्यते च नियमात्सिद्धिस्तु न दृश्यतेऽन्या ।।३११।। जीवो हि तावत्क्रमनियमितात्मपरिणामैरुत्पद्यमानो जीव एव, नाजीवः, एवमजीवोऽपि क्रमनियमितात्मपरिणामैरुत्पद्यमानोऽजीव एव, न जीवः; सर्वद्रव्याणां स्वपरिणामैः सह तादात्म्यात् कङ्कणादिपरिणामैः काञ्चनवत् । ___एवं हि स्वपरिणामैरुत्पद्यमानस्याप्यजीवेन सह कार्यकारणभावो न सिध्यति, सर्वद्रव्याणां द्रव्यांतरेण सहोत्पाद्योत्पादकभावाभावात्; तदसिद्धौ चाजीवस्य जीवकर्मत्वं न सिध्यति; तदसिद्धौ च कर्तृकर्मणोरनन्यापेक्षसिद्धत्वात् जीवस्याजीवकर्तृत्वं न सिध्यति ।
अतोजीवोऽकर्ता अवतिष्ठते ।।३०८-३११।। इन गाथाओं का भाव आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है -
“प्रथम तो यह जीव क्रमनियमित अपने परिणामों से उत्पन्न होता हुआ जीव ही है, अजीव नहीं; इसीप्रकार अजीव भी क्रमनियमित अपने परिणामों से उत्पन्न होता हुआ अजीव ही है, जीव नहीं; क्योंकि जिसप्रकार सुवर्ण का कंकण आदि परिणामों के साथ तादात्म्य है; उसीप्रकार सर्व द्रव्यों का अपने-अपने परिणामों के साथ तादात्म्य है।
इसप्रकार अपने परिणामों से उत्पन्न होते हुए जीव का अजीव के साथ कार्य-कारणभाव सिद्ध नहीं होता; क्योंकि सर्वद्रव्यों का अन्य द्रव्यों के साथ उत्पाद्य-उत्पादकभाव का अभाव है।
भिन्न द्रव्यों का परस्पर कार्य-कारणभाव सिद्ध न होने पर अजीव जीव का कर्म (कार्य) है - यह भी सिद्ध नहीं होता। 'अजीव जीव का कर्म है' - यह सिद्ध नहीं होने पर 'जीव अजीव का कर्ता है' - यह भी सिद्ध नहीं होता; क्योंकि कर्ता-कर्म अनन्य ही होते हैं।
इसप्रकार जीव अकर्ता ही सिद्ध होता है।"
उक्त बात को स्पष्ट करते हुए इन गाथाओं की आत्मख्याति टीका में पर्यायों को क्रमनियमित कहा गया है; जिसके आधार पर आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी ने क्रमबद्धपर्याय के स्वरूप को प्रस्तुत किया है। स्वामीजी की इस क्रान्तिकारी खोज ने एक महान सत्य का उद्घाटन तो किया ही, साथ ही समाज को आन्दोलित भी कर दिया।
लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करनेवाले इस महान सिद्धान्त ने मेरे जीवन को भी आन्दोलित किया और मेरे जीवन को बदलनेवाला, आध्यात्मिक मोड देनेवाला यही सिद्धान्त है। इस बात का विवरण मैंने अपनी अन्य कृति क्रमबद्धपर्याय' के आरम्भ में अपनी बात' में दिया है।