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समयसार
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किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं,
___ उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।७५।। एक नय का पक्ष है कि जीव भोक्ता है और दूसरे नय का पक्ष है कि जीव भोक्ता नहीं है। इसप्रकार चित्स्वरूप जीव के संबंध में दो नयों के दो पक्षपात हैं, किन्तु तत्त्ववेदी पक्षपात से रहित है। उसके लिए तो चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ही है।
(उपजाति) एकस्य जीवो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ । यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।७६।। एकस्य सूक्ष्मो न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ । यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।७७।। एकस्य हेतुर्न तथा परस्य चिति द्वयोविति पक्षपातौ।। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।७।।
(रोला) एक कहे ना जीव दूसरा कहे जीव है,
किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं,
उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।७६।। एक नय का पक्ष है कि जीव जीव है और दूसरे नय का पक्ष है कि जीव जीव नहीं है। इसप्रकार चित्स्वरूप जीव के संबंध में दो नयों के दो पक्षपात हैं; किन्तु तत्त्ववेदी पक्षपात से रहित है। उसके लिए तो चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ही है।
एक कहे ना सूक्ष्म दूसरा कहे सूक्ष्म है,
किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्त्ववेदी जो जन हैं,
___ उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।७७।। एक नय का पक्ष है कि जीव सूक्ष्म है और दूसरे नय का पक्ष है कि जीव सूक्ष्म नहीं है। इसप्रकार चित्स्वरूप जीव के संबंध में दो नयों के दो पक्षपात हैं, किन्तु तत्त्ववेदी पक्षपात से रहित है। उसके लिए तो चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ही है।
एक कहे ना हेतु दूसरा कहे हेतु है,