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कर्ता-भोक्ता कहना भी अज्ञानियों का अनादि संसार से प्रसिद्ध व्यवहार है।
ध्यान देने की बात यह है कि इसे ज्ञानियों का नहीं, अज्ञानियों का व्यवहार बताया गया है। भले कुतो द्विक्रियानुभावी मिथ्यादृष्टिरिति चेत् -
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जम्हा दु अत्तभावं पोग्गलभावं च दो वि कुव्वंति ।
तेण दु मिच्छादिट्ठी दोकिरियावादिणो हुंति ।। ८६ ।। यस्मात्त्वात्मभावं पुद्गलभावं च द्वावपि कुर्वंति ।
तेन तु मिथ्यादृष्टयो द्विक्रियावादिनो भवति ।। ८६ ।।
यतः किलात्मपरिणामं पुद्गलपरिणामं च कुर्वंतमात्मानं मन्यंते द्विक्रियावादिनस्ततस्ते मिथ्यादृष्टय एवेति सिद्धांत: । मा चैकद्रव्येण द्रव्यद्वयपरिणाम: क्रियमाणः प्रतिभातु ।
समयसार
ही ज्ञानी भी प्रयोजन विशेष से इसप्रकार के व्यवहार में प्रवर्तित होते हों, इसप्रकार की भाषा का उपयोग करते हों; तथापि वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि निश्चय से एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ताधर्ता नहीं है; इसकारण वे अज्ञानदशा को प्राप्त न होकर ज्ञानी ही रहते हैं।
उक्त गाथाओं में ८४वीं गाथा में असद्भूतव्यवहारनय का मत बताया गया है और ८५वीं गाथा में उसमें दोष दिखाया गया है। कहा गया है कि यदि व्यवहारनय के कथनानुसार आत्मा को पुद्गलकर्म का कर्ता-भोक्ता माना जायेगा तो द्विक्रियावादित्व का प्रसंग आयेगा । ऐसा मानना होगा कि आत्मा अपनी क्रिया भी करे और कर्म की क्रिया भी करे; जो कि जिनेन्द्र भगवान को स्वीकार नहीं है।
देखो, यहाँ द्विक्रियावादी को सर्वज्ञ के मत के बाहर कहा है। इसका तात्पर्य यह है कि जो ऐसा मानते हैं कि हम अपना काम तो करते ही हैं, पर का काम भी करते हैं; वे सभी द्विक्रियावादी होने से सर्वज्ञ के मत के बाहर हैं।
८५वीं गाथा में द्विक्रियावादी को मिथ्यादृष्टि बताया गया है। अतः अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि द्विक्रियावादी मिथ्यादृष्टि क्यों है ?
इस प्रश्न के उत्तर में ही ८६वीं गाथा का जन्म हुआ है; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है
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हरिगीत )
यदि आतमा जड़भाव चेतनभाव दोनों को करे I
तो आतमा द्विक्रियावादी मिथ्यादृष्टि अवतरे ।। ८६ ।।
क्योंकि वे ऐसा मानते हैं कि आत्मा के भाव और पुद्गल के भाव दोनों को आत्मा करता है; इसीलिए वे द्विक्रियावादी मिथ्यादृष्टि हैं।
इस गाथा में द्विक्रियावादी को परिभाषित किया गया है । आत्मख्याति में इस गाथा के भाव को भी घड़े और कुम्हार के उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट किया गया है; जो इसप्रकार है
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'आत्मा के परिणाम को और पुद्गल के परिणाम को स्वयं आत्मा करता है - ऐसा
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