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प्रथम संस्करण (१ जनवरी, २००३)
मूल्य : ३५ रुपये
५ हजार
टाइपसैटिंग त्रिमूर्ति कम्प्यूटर्स
ए-४, बापूनगर, जयपुर-१५
मुद्रक :
जे. के. ऑफसेट
जामा मस्जिद, दिल्ली
बहुत-बहुत आशीर्वाद
पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल की सुखी जीवन, संस्कार, इन भावों का फल क्या होगा, विदाई की बेला, जिनपूजन रहस्य, णमोकार महामंत्र, सामान्य श्रावकाचार आदि कृतियों के पठन-पाठन से सिद्ध होता है कि वे सिद्धहस्त रचनाकार हैं। उनकी 'हरिवंश कथा' एवं 'शलाका पुरुष' प्रथमानुयोग की अनुपम कृतियाँ हैं। हरिवंश कथा में भगवान शीतलनाथ के समय से लेकर भगवान नेमिनाथ तक के युग में हुए हरिवंश के उद्भव, विकास के पात्रों का चरित्र-चित्रण प्रभावी एवं मनमोहक ढंग से किया गया है। सभी पात्र सजीव से जान पड़ते हैं। इसका घर-घर में पठन-पाठन होना चाहिए। जिससे वर्तमान समय में बिखरते नैतिक मूल्यों एवं श्रावक संस्कार को दृढ़ रखा जा सके।
आप इसीप्रकार अपनी सिद्धहस्त लेखनी के द्वारा समाज एवं साहित्यिक सेवा करते रहें इसके लिए मेरा बहुत-बहुत आशीर्वाद। - (मुनिश्री) उर्जयन्तसागरजी
महाराज
अभिमत
श्री पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल द्वारा लिखित हरिवंश कथा एवं शलाका पुरुष स्वाध्यायार्थियों की आवश्यकताओं को पूर्ण करनेवाली उपयोगी और सार्थक रचना है। ढूंढारी भाषा में प्रकाशित प्रथमानुयोग के ग्रंथ और पीछे संस्कृत शब्दों के हिन्दी अर्थ सहित प्रकाशित ग्रंथ दोनों ही से स्वाध्यायार्थी पुरुष एवं महिलायें संतुष्ट नहीं थे। प्रस्तुत ग्रंथ उक्त पाठकों की रुचि और बुद्धि के अनुकूल सरल, सुबोध और आधुनिक रोचक शैली में लिखे गये हैं, जो अनति विस्तृत और अल्पमूल्य में उपलब्ध है। इनमें उचित संशोधन के साथ धार्मिक विषयों का समावेश भी है तथा करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग संबंधी आवश्यक सामग्री भी रख दी गई है। वर्तमान में ऐसे ही ग्रंथों की आवश्यकता है, जिसकी पूर्ति ऐसी रचनाओं से की जा रही है। विद्वान लेखक का यह परिश्रम सराहनीय है। - वयोवृद्ध विद्वान पण्डित नाथूलाल शास्त्री, इन्दौर ( संहितासूरि प्रतिष्ठाचार्य पूर्व अध्यक्ष विद्वत् परिषद् ).
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