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________________ प्रकाशकीय 'रक्षाबंधन एवं दीपावली' डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल की नवीनतम कृति है, जिसका प्रकाशन पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर के माध्यम से करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। इस २१वीं शताब्दी के मूर्धन्य विद्वानों में तत्त्ववेत्ता डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल अग्रगण्य हैं। आपने जैनदर्शन को आत्मसात कर अपने तात्त्विक प्रवचनों के माध्यम से अनेक साधर्मी जनों को सत्यमार्ग का दिग्दर्शन कराया है। आपकी वक्तृत्व शैली तो मंत्रमुग्ध करनेवाली है ही, लेखन के क्षेत्र में भी आपका कोई सानी नहीं है । अबतक विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित ६० पुस्तकें इसका जीता-जागता प्रमाण है, जो अबतक ४० लाख से अधिक की संख्या में प्रकाशित होकर जन-जन के हाथों में पहुँच चुकी हैं। मैं डॉ. साहब के सम्पर्क में पहली बार १९७० ई. सन् में तब आया, जब ब्र. धन्यकुमारजी बेलोकर एवं उनकी बहिन विदुषी विजयाबेन पांगल के निमंत्रण पर डॉ. साहब ७ दिन के लिए शिक्षण शिविर के निमित्त कोल्हापुर पधारे । उस समय मैं कुम्भोज-बाहुबली में रहता था। शिविर के समापन के पश्चात् दर्शनार्थ भारिल्लजी कुम्भोज - बाहुबली पधारे। वहाँ विराजित अध्यात्मप्रेमी स्व. १०८ मुनि श्री समन्तभद्रजी से विदुषी गजाबेन कोल्हापुर में डॉ. भारिल्लजी के सुने प्रवचनों पर चर्चा कर रही थीं, जिसमें उन्होंने कहा कि अपनी अंतरंग लड़ाकू प्रवृत्ति के कारण हमें संघर्ष में उलझे हुए मुनिराज ही अच्छे लगते हैं। बाद मैं मैंने रक्षाबन्धन के इस प्रसंग में इसी विषय को डॉ. भारिल्लजी के व्याख्यान में पुन: सुना, जिससे मुझे मुनिराज के स्वरूप का यथार्थ बोध हुआ । बाद में मार्च १९८४ में आपकी लेखनी से प्रसूत कथा संग्रह 'आप कुछ भी कहो' का प्रकाशन किया गया, जिसमें एक कहानी 'अक्षम्य अपराध' भी थी, जिसकी विषय-वस्तु रक्षाबंधन पर्व से संबंधित थी और उसमें आचार्य अकंपन, मुनिराज श्रुतसागर और मुनिराज विष्णुकुमार का बेबाक चित्रण था, जिससे मुनिराज के स्वरूप का सम्यक् बोध हुआ। तभी से मेरे मन में इस विषयवस्तु को पुस्तकाकार प्रकाशित करने का भाव था, जो अब साकार हो सका है। रक्षाबन्धन एवं दीपावली पर्व पर डॉ. साहब अबतक लगभग ४० बार व्याख्यान कर चुके हैं। अनेक श्रोताओं की शंकाओं का समाधान भी आपके द्वारा समय-समय पर किया गया है। इस कृति में आपने सभी शंकाओं का यथोचित समाधान करने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तरों का समावेश कर पुस्तक को उपयोगी बनाने का प्रयास किया है। आपने क्रमबद्धपर्याय, परमभावप्रकाशक नयचक्र, समयसार अनुशीलन, प्रवचनसार अनुशीलन जैसी गूढ़ दार्शनिक विषयों को स्पष्ट करने वाली कृतियाँ तो लिखीं ही हैं, जिनमें आगम और अध्यात्म के गहन रहस्यों को सरल व सुबोध भाषा में लिखकर जन-जन तक पहुँचाने का सफल प्रयास किया गया है। धर्म के दशलक्षण, बारह भावना: एक अनुशीलन, तीर्थंकर महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ, पण्डित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व तथा सत्य की खोज व आप कुछ भी कहो (कहानी संग्रह) भी आपकी लोकप्रिय कृतियाँ हैं। आपकी अब तक प्रकाशित पुस्तकों की सूची इस कृति में अन्त में प्रकाशित हैं, जो दृष्टव्य हैं । कृति के आवरण एवं प्रकाशन व्यवस्था का सम्पूर्ण दायित्व प्रकाशन विभाग के मैनेजर श्री अखिल बंसल ने बखूबी सम्हाला है। कीमत कम करने में अनेक महानुभावों का यथोचित सहयोग प्राप्त हुआ है, जिनकी सूची पृथक् से प्रकाशित है। सभी सहयोगियों का हम हृदय से आभार मानते हैं। इस कृति के माध्यम से सभी आत्मार्थीजन रक्षाबन्धन एवं दीपावली का वास्तविक स्वरूप समझें इसी भावना के साथ । दिनांक ८ अक्टूबर, २००५ - ब्र. यशपाल जैन, एम. ए. प्रकाशन मंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर
SR No.008372
Book TitleRakshabandhan aur Deepavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size177 KB
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