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________________ रक्षाबंधन और दीपावली आचार्य अकंपन ने काँपते हुए हाथ से श्रुतसागर को आशीर्वाद देते हुए कहा - “मैंने यह सोचा भी न था कि जिसे मैंने एक दिन सम्पूर्ण संघ के समक्ष श्रुतसागर' की उपाधि से अलंकृत किया था, उसे किसी दिन इतना कठोर प्रायश्चित्त देना होगा। प्रिय श्रुतसागर ! तुम ज्ञान की परीक्षा में तो अनेक बार उत्तीर्ण हुए हो, आज तुम्हारे ध्यान की परीक्षा है; जीवन का रहना न रहना तो क्रमबद्ध के अनुसार ही होगा, पर मैं तुम्हारे आत्मध्यान की स्थिरता की मंगल कामना करता हूँ। दूसरों को तो तुमने अनेक बार जीता है। जाओ, अब एक बार अपने को भी जीतो।” कहते-कहते आचार्य अकंपन और भी अधिक गम्भीर हो गये। आज्ञा शिरोधार्य कर जाते हुए श्रुतसागर को वे तबतक देखते रहे, जबतक कि वे दृष्टि से ओझल न हो गये। हिंसा में मारने की बुद्धि हो, परन्तु उसकी आयु पूर्ण हुए बिना मरता नहीं है, यह अपनी द्वेषपरिणति से आप ही पाप बाँधता है। अहिंसा में रक्षा करने की बुद्धि हो, परन्तु उसकी आयु अवशेष हुए बिना वह जीता नहीं है, यह अपनी प्रशस्त रागपरिणति से आप ही पुण्य बाँधता है। इसप्रकार यह दोनों हेय हैं, जहाँ वीतराग होकर दृष्टाज्ञातारूप प्रवर्ते वहाँ निर्बन्ध है सो उपादेय है। सो ऐसी दशा न हो तब तक प्रशस्तरागरूप प्रवर्तन करो; परन्तु श्रद्धान तो ऐसा रखो कि यह भी बन्ध का कारण है, हेय है; श्रद्धान में इसे मोक्षमार्ग जाने तो मिथ्यादृष्टि ही होता है। - मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ : २२६ रक्षाबंधन : कुछ प्रश्नोत्तर १. प्रश्न : आपने कहा कि रक्षा करने का भाव भी बंध का कारण है, तो क्या मुनिराज विष्णुकुमार को पापबंध हुआ होगा, उनका भी नुकसान हुआ होगा ? उत्तर : अरे, भाई ! हमने यह तो नहीं कहा कि रक्षा करने का भाव पापबंध का कारण है; हमने तो अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में कहा था कि रक्षा करने का भाव पुण्यबंध का कारण है; इसलिये मुनिराज विष्णुकुमारजी को भी पुण्यबंध ही हुआ होगा; किन्तु उन्हें नुकसान तो हुआ ही, दीक्षा का छेद हो गया, गृहस्थ वेष अपनाना पड़ा, छल-कपट करना पड़ा, झूठ बोलना पड़ा। यह सब कुछ नुकसान ही तो है। २. प्रश्न : हमने तो यह पढ़ा है कि झूठ बोलना पाप है, छलकपट करना भी पापबन्ध का कारण है; परन्तु आप कह रहे हैं कि उन्हें पुण्यबन्ध हुआ होगा? उत्तर : हमने यह कब कहा कि झूठ बोलने या छल-कपट करने से पुण्यबन्ध होता है। हमने तो यह कहा कि वात्सल्यभाव के कारण उन्हें परमतपस्वी मुनिराजों की रक्षा करने का तीव्र भाव आ गया था; इस कारण उन्हें पुण्यबन्ध हुआ होगा। ३. प्रश्न : यदिवेयहसब नहीं करते तो बेचारे मुनिराजों का क्या होता? उत्तर : महान तपस्वी ज्ञानी-ध्यानी मुनिराजों को तुम बेचारे कहते हो ? अरे वे तो अपने आत्मा की परम शरण में थे। उनमें से एक-एक ऐसा था कि कुछ भी चमत्कार कर सकता था; पर उन्हें यह उचित ही नहीं लगा; इसलिए कुछ भी नहीं किया। ४. प्रश्न : ऐसी परिस्थिति में आजके मुनिराजोंको क्या करना चाहिए? उत्तर : हम क्या कहें ? यह निर्णय तो उनको ही करना होगा कि उन्हें विष्णुकुमार के पथ पर चलना है या आचार्य अकंपन आदि सात सौ मुनिराजों के पथ पर । यदि विष्णुकुमार के पथ पर ही चलना है तो (16)
SR No.008372
Book TitleRakshabandhan aur Deepavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size177 KB
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