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________________ २९१ २९० प्रवचनसार अनुशीलन आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी इन गाथाओं के भाव को इसप्रकार स्पष्ट करते हैं "छोटे से छोटे अणु के दो, तीन इत्यादि प्रदेश नहीं होते हैं; इसलिए वह अप्रदेशी है, किन्तु उसके एक प्रदेश तो होता ही है अर्थात् वह प्रदेशमात्र है। एक परमाणु शब्दरूप नहीं होता; किन्तु अनेक परमाणु स्कंधरूप अवस्था धारण करें, तब शब्द उत्पन्न होता है । एक परमाणु में शब्द उत्पन्न करने की शक्ति नहीं; अतः परमाणु अशब्द है। उस परमाणु में आठ स्पर्श - हल्का-भारी, रूखा-चिकना, कड़ानरम, ठण्डा-गरम, पाँच रस, दो गंध और पाँच वर्ण का सद्भाव होता है। उसमें चिकने अथवा रूखेपन के कारण परमाणु द्विप्रदेशादिपने से लेकर अनेकप्रदेशीपने रूप स्कंधरूप हो जाता है। एक परमाणु का दूसरे एक परमाणु के साथ स्कंधरूप में होना द्विप्रदेशीपना है तथा एक परमाणु का दूसरे दो परमाणु के साथ स्कंधरूप में होना, वह त्रिप्रदेशीपना है। इसप्रकार एक परमाणु अन्य परमाणुओं के साथ पिण्डरूप परिणमता हुआ अनेकप्रदेशीपने रूप होता है। इससे सिद्ध होता है कि पुद्गलों की स्कंधरूप अवस्था का कारण यह रूखापन और चिकनापन ही है।' शरीर, मन व वाणी की पिण्डरूप अवस्था का कारण आत्मा नहीं; किन्तु उसके रूखेपन और चिकनेपनेरूप गुण हैं - ऐसा उन ज्ञेयों का सच्चा ज्ञान करे तो परद्रव्य के कर्त्तापने का अहंकार टूटे और सम्यग्ज्ञान हो। किसी गुण की पर्याय में अंश कल्पना करने पर उसमें जो छोटे से छोटा (निरंशरूप) अंश पड़ता है, उसको उस गुण की पर्याय का अविभागप्रतिच्छेद कहते हैं। उदाहरण के लिए जैसे बकरी की अपेक्षा गाय के दूध में और गाय की अपेक्षा भैंस के दूध में चिकनेपन के १. दिव्यध्वनिसार भाग-४, पृष्ठ-१७० २. वही, पृष्ठ-१७० गाथा-१६३-१६५ अविभागप्रतिच्छेद अधिक होते हैं तथा धूल की अपेक्षा राख में और राख की अपेक्षा रेत में रूखेपन के अविभागप्रतिच्छेद अधिक होते हैं। इसप्रकार स्कंधों की तारतम्यता का कारण उनके चिकने और रूखे गुण हैं - ऐसा उन ज्ञेयों का ज्ञान करो।' ___पुद्गल की स्कंधरूप अवस्था उसके स्निग्धत्व व रूक्षत्व के कारण होती है। दो अधिक गुण वाला परमाणु दो कम गुणवाले को परिणमाने में निमित्त होता है। आत्मा स्कंध का कर्त्ता तो है ही नहीं; किन्तु उसमें निमित्त भी नहीं। कम अंशवाला परमाणु परिणम्य है और दो अधिकवाला परमाणु परिणामक है। एक अंशवाला रूक्षत्व अथवा स्निग्धत्ववाला परमाणु परिणामक तो है ही नहीं और जघन्यभाव में वर्तता होने से परिणम्य भी नहीं। इसप्रकार जघन्यभाव बंध का कारण नहीं। परिणम्य अर्थात् परिणमने योग्य और परिणामक अर्थात् दूसरे को परिणमाने में निमित्तभूत । ___ यहाँ गुण का अर्थ त्रिकाली गुण नहीं; अपितु गुण अर्थात् अंश समझना चाहिये। ज्ञेयों का इसप्रकार का स्वभाव है। ज्ञान ज्ञेयों के स्वभाव को जानता है; किन्तु ज्ञेयों को करता नहीं। ऐसा सच्चा ज्ञान करे तो पर के कर्तृत्व का अंहकार टलता है और स्वयं को शांति मिलती है।" उक्त गाथाओं और उनकी टीकाओं में पुद्गल स्कन्धों के बनने की प्रक्रिया समझाई गई है। एकप्रदेशीय पुद्गल परमाणु मूलत: पुद्गलद्रव्य है और अनेक परमाणुओं के स्कंध पुद्गलद्रव्य की पर्यायें हैं। पुद्गल के अतिरिक्त अन्य द्रव्य एकक्षेत्रावगाहरूप से एकसाथ रहते हुए भी कभी परस्पर में मिलते नहीं हैं। आकाश, धर्म और अधर्म - ये तो १. दिव्यध्वनिसार भाग-४, पृष्ठ-१७२ ३. वही, पृष्ठ-१७५ २. वही, पृष्ठ-१७४ ४. वही, पृष्ठ-१७५
SR No.008369
Book TitlePravachansara Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size716 KB
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