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श्रीमदमृतचन्द्रसूरिकृत तत्त्वप्रदीपिका संस्कृत टीका
एवं डॉ. हुकमचन्द भारिल्लकृत ज्ञानज्ञेयतत्त्वप्रबोधिनी हिन्दी टीका
सहित श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवविरचित == प्रवचनसार=
मंगलाचरण
(हरिगीत ) नित्य निज में ही रहें पर जानते सम्पूर्ण जग। हैं वीतरागी पूर्ण पर सबको बताते मोक्षमग ।। यद्यपि अहिंसक पूर्णत: पर घातियों को घात कर | जो बन गये अरिहंत जिन उनको नमन कर जोड़कर ||१|| हैं अष्ट कर्मों से रहित हैं अष्ट गुण मंडित सदा । हैं ज्ञानतनु तनरहित अमलानन्त सुख विलसत सदा ।। अनुपम अचल सिद्धायतनथित आयतन से रहित जो। कर जोड़कर हो नमन अगणित गुणों से हैं सहित जो||२|| आचार्य पंचाचारयुत जो साधुगण में ज्येष्ठ हैं। पठन-पाठन निरत पाठक ज्ञानधन में श्रेष्ठ हैं।। निज आतमा रत साधुगण जो भवजलधि के अन्त हैं। उन सभी को हो नित नमन जो साधना रत संत हैं|३||