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प्रकाशकीय समयसार की डॉ. भारिल्ल कृत ज्ञायकभावप्रबोधिनी हिन्दी टीका के प्रकाशनोपरान्त अब यह प्रवचनसार की ज्ञानज्ञेयतत्त्वप्रबोधिनी हिन्दी टीका प्रस्तुत करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। समयसार की ज्ञायकभावप्रबोधिनी हिन्दी टीका को अध्यात्मप्रेमी समाज ने जिसप्रकार अति उत्साह के साथ अपनाया; उसकी कल्पना भी हमें नहीं थी। २२ माह में १२ हजार प्रतियों के ४ संस्करणों का प्रकाशित होना कोई साधारण बात नहीं है।
मुमुक्षु समाज के उत्साह से प्रेरित होकर मैंने डॉ.भारिल्ल से कहा कि आपका प्रवचनसार पर भी वैसा ही अधिकार है, जैसाकि समयसार पर । ४०८ पृष्ठों का प्रवचनसार का सार और लगभग १३०० पृष्ठों के प्रवचनसार अनुशीलन के तीन भाग आपने लिखें । अत: यदि आप समयसार के समान ही प्रवचनसार की भी हिन्दी भाषा में सरल और सुबोध एक टीका लिखें तो मुमुक्षु समाज का बहुत उपकार होगा। मुझे प्रसन्नता है कि डॉ. भारिल्ल ने मेरे द्वारा बार-बार अनुरोध किये जाने पर प्रवचनसार ग्रंथाधिराज पर हिन्दी टीका लिखना स्वीकार कर लिया; परिणामस्वरूप आज यह ज्ञानज्ञेयतत्त्वप्रबोधिनी हिन्दी टीका आपके करकमलों में प्रस्तुत है।
इस टीका में कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं; जो इसे अन्य टीकाओं से पृथक् स्थापित करती हैं और उन टीकाओं के रहते हुए भी इसकी आवश्यकता और उपयोगिता को रेखांकित करती हैं।
ज्ञानज्ञेयतत्त्वप्रबोधिनी टीका की विशेषताएँ इसप्रकार हैं - १. भाषा सरल, सहज, सुलभ, स्पष्ट भाववाही है।
२. आचार्य अमृतचन्द्र कृत तत्त्वप्रदीपिका नामक संस्कृत टीका का शब्दश: अनुवाद न देकर भावानुवाद दिया गया है। जिससे विषयवस्तु को समझने में साधारण पाठकों को विशेष लाभ होगा।
३. गाथा एवं कलशों का पद्यानुवाद भी सरस है, पद्य भी गद्य जैसा ही है, अन्वय लगाने की आवश्यकता नहीं है।
४. टीका, गाथा एवं कलशों के भाव को व्यक्त करनेवाला हिन्दी टीकाकार का विशेष स्पष्टीकरण मूल ग्रंथ के प्राणभूत विषय को स्पष्ट करने में पूर्णत: समर्थ है।
५. महत्त्वपूर्ण गाथाओं का भाव विस्तार से सोदाहरण समझाया गया है।
६. आचार्य जयसेन कृत तात्पर्यवृत्ति में समागत गाथायें, जो तत्त्वप्रदीपिका में नहीं हैं, वे भी इसमें शामिल की गई हैं, उन गाथाओं का गद्य एवं पद्यानुवाद के साथ-साथ तात्पर्यवृत्ति टीका का भाव भी इसमें दिया गया है। हिन्दी-गुजराती-मराठी-कन्नड़ भाषा में प्राप्त अन्य टीकाओं में उक्त गाथायें उपलब्ध नहीं हैं।
७. इस ग्रन्थ की ऐसी कोई हिन्दी, गुजराती, मराठी और कन्नड़ टीका उपलब्ध नहीं है, जिसमें टीकाकार द्वारा ही किया गया गाथाओं और कलशों का पद्यानुवाद दिया गया हो; पर इस टीका में टीकाकार द्वारा ही किया गया गाथाओं और कलशों का हिन्दी पद्यानुवाद दिया गया है।
८.४७ नयों का विवरण जितना स्पष्ट इस कृति में दिया गया है, उतना इसके पहले की टीकाओं में उपलब्ध नहीं होता।