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प्रवचनसार
चहुँ ओर से सुख-ज्ञान से समृद्ध ध्यावे परमसुख ||१९८|| घनघातिकर्मों के नाशक, सर्व पदार्थों के प्रत्यक्ष ज्ञाता और ज्ञेयों के पार को प्राप्त करनेवाले, सम्पूर्ण ज्ञेयों को जाननेवाले संदेह रहित श्रमण अर्थात् अरहंत भगवान किस पदार्थ का ध्यान करते हैं। ___ अनिन्द्रिय और इन्द्रियातीत हुआ सर्वबाधारहित परिपूर्ण सुख से और सम्पूर्ण ज्ञान से समृद्ध आत्मा अर्थात् अरहंत भगवान परमसुख का ध्यान करते हैं। उक्त गाथाओं का भाव आ. अमृतचन्द्र तत्त्वप्रदीपिका टीका में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं
माह का और ज्ञानशक्ति के प्रतिबंधक का सद्भाव होने से, तृष्णा सहित होने से और उनके प्रत्यक्षज्ञान का अभाव होने से, लौकिकजन अपने विषय को भी स्पष्टरूप से नहीं जानते; इसकारण वे लौकिक जन, जिनकी अभिलाषा हो - ऐसे अभिलषित, जिनको जानने की इच्छा हो - ऐसे जिज्ञासित और संदिग्ध पदार्थों का ध्यान करते हुये दिखाई देते हैं; परन्तु घाति कर्मों के अभाव से मोह का अभाव और ज्ञानशक्ति के प्रतिबंधक का ज्ञेयान्तगतत्वाभ्यांचनाभिलषित, न जिज्ञासति, न संदिहाति च, कुतोऽभिलषितो जिज्ञासितः संदिग्धश्चार्थः । एवं सति किं ध्यायति ।।१९७।। ___ अयमात्मा यदैव सहजसौख्यज्ञानबाधायतनानामसार्वदिक्कासकलपुरुषसौख्यज्ञानायतनानांचाक्षाणामभावात्स्वयमनक्षत्वेन वर्तते तदैव परेषामक्षातीतोभवन निराबाधसहजसौख्यज्ञानत्वात् सर्वाबाधवियुक्तः, सार्वदिक्कसकलपुरुषसौख्यज्ञानपूर्णत्वात्समन्तसर्वाक्षसौख्यज्ञानाढ्यश्च भवति । एवंभूतश्च सर्वाभिलाषजिज्ञासासंदेहासंभवेऽप्यपूर्वमनाकुलत्वलक्षणं परमसौख्यं ध्यायति । अनाकुलत्वसंगतैकाग्रसंचेतनमात्रेणावतिष्ठत इति यावत्। ईदृशमवस्थानं च सहजज्ञानानन्दस्वभावस्य सिद्धत्वस्य सिद्धिरेव ।।१९८।। अभाव होने के कारण, तृष्णा नष्ट हो जाने के कारण सर्वज्ञ भगवान ने समस्त पदार्थों को प्रत्यक्ष जान लिया है अर्थात् ज्ञेयों के पार को प्राप्त कर लिया है; इसलिए वे सर्वज्ञ भगवान अभिलाषा नहीं रखते, उन्हें जिज्ञासा और संदेह नहीं होता; तब फिर उनके अभिलषित, जिज्ञासित और संदिग्ध पदार्थ कैसे हो सकते हैं ?
यदि ऐसा है तो फिर वे क्या ध्याते हैं, किसका ध्यान करते हैं ?
सहज सुख और ज्ञान की बाधक तथा अपूर्ण और असर्वांग सुख व ज्ञान की आयतन इन्द्रियों के अभाव के कारण जब यह आत्मा स्वयं अनिन्द्रियरूप से वर्तता है; उसी समय दूसरों को इन्द्रियगोचर वर्तता हआ निराबाध सहजसुख और ज्ञानवाला होने से सर्वबाधा रहित और सर्वप्रकार के सुख और ज्ञान से परिपूर्ण होने से सुख और ज्ञान से समृद्ध होता है।
इसप्रकार यह आत्मा सर्व अभिलाषा, जिज्ञासा और संदेह का असंभव होने पर भी