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ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : द्रव्यविशेषप्रज्ञापन अधिकार
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भी उत्पाद और विनाश अवश्य संभवित हैं; क्योंकि समयरूपी वृत्त्यंश परमाणु के अतिक्रमण के द्वारा उत्पन्न होता है; इसलिए कारणपूर्वक है। णोर्व्यतिपातोत्पद्यमानत्वेन कारणपूर्वत्वात् । तौ यदि वृत्त्यंशस्यैव, किं यौगपद्येन किं क्रमेण । यौगपद्येन चेत. नास्ति यौगपद्यं, सममेकस्य विरुद्धधर्मयोरनवतारात । क्रमेण चेत, नास्ति क्रमः, वृत्त्यंशस्य सूक्ष्मत्वेन विभागाभावात् । ततो वृत्तिमान् कोऽप्यवश्यमनुसर्तव्यः । स च समयपदार्थ एव । तस्य खल्वेकस्मिन्नपि वृत्त्यंशे समुत्पादप्रध्वंसौ संभवतः । यो हि यस्य वृत्तिमतो यस्मिन् वृत्त्यंशे तवृत्त्वंशविशिष्टत्वेन नोत्पादः, स एव तस्यैव वृत्तिमतस्तस्मिन्नेव वृत्यंशे पूर्ववृत्त्वंशविशिष्टत्वेन प्रध्वंसः।। यद्येवमुत्पादव्ययावेकस्मिन्नपि वृत्त्यंशे संभवतः समयपदार्थस्य कथं नाम निरन्वयत्वं,
वृत्त्यंशविशिष्टत्वाभ्यां युगपदुपात्तप्रध्वंसोत्पादस्यापि स्वभावेनाप्रध्वस्तानुत्पन्नत्वादवस्थितत्वमेव न भवेत्।
एवमेकस्मिन् वृत्त्यंशे समयपदार्थस्योत्पादव्ययध्रौव्यवत्त्वं सिद्धम् ।।१४२।।
तात्पर्य यह है कि परमाणु के द्वारा आकाश के एक प्रदेश का मंदगति से उल्लंघन करना कारण है और समयरूपी वृत्त्यंश उस कारण का कार्य है। इसलिए उसमें किसी पदार्थ के उत्पाद-विनाश होते रहना चाहिए।
यदि कोई कहे कि किसी पदार्थ के उत्पाद-नाश होने की क्या आवश्यकता है ? उसके स्थान पर उक्त वृत्त्यंश को ही उत्पाद-विनाश होते मान लो तो क्या आपत्ति है ?
ऐसा प्रश्न उपस्थित होने पर कहते हैं कि - यदि उत्पाद और विनाश वृत्त्यंश के ही माने जावें तो फिर प्रश्न होता है कि उत्पाद-विनाश एकसाथ होते हैं या क्रमश: ? एकसाथ तो घटित नहीं हो सकते; क्योंकि एक ही समय में एक के परस्पर विरोधी दो धर्म नहीं होते।
यदि क्रमशः होते हैं' - यह कहा जाय तोक्रम नहीं बनता; क्योंकि वृत्त्यंश के सूक्ष्म होने से उसमें विभाग का अभाव है; इसलिए वृत्तिमान की खोज की जानी चाहिए और वृत्तिमान कालपदार्थ ही है। उस काल पदार्थ को वस्तुत: एक वृत्त्वंश में भी उत्पाद और विनाश होना अशक्य नहीं है; क्योंकि जिस वृत्तिमान के जिस वृत्त्यंश में उस वृत्त्यंश की अपेक्षा जो उत्पाद है, वही उत्पाद उसी वृत्तिमान के उसी वृत्त्वंश में पूर्व वृत्त्वंश की अपेक्षा से विनाश है।
यदि इसप्रकार उत्पाद और विनाश एक वृत्त्यंश में भी संभव है तो फिर कालपदार्थ निरन्वय कैसे हो सकता है ?
पहले और बाद के वृत्त्वंशों की अपेक्षा युगपत् विनाश और उत्पाद को प्राप्त होता हुआ