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प्रवचनसार
___ यहाँ आत्मा मोह, राग और द्वेष से किसप्रकार बंधन में पड़ता है - इस बात को समझाने के लिए आचार्यदेव बंधन में पड़े हुए तीन प्रकार के हाथियों का उदाहरण देते हैं।
जंगली हाथियों को पकड़नेवाले शिकारी लम्बा-चौड़ा गड्डा खोदकर उसे जंगली झाड़ियों से ढक देते हैं। जिसप्रकार उक्त गड्डेसे बेखबर हाथी तत्संबंधी अज्ञान के कारण उक्त गड्डे में गिर जाते हैं; उसीप्रकार द्रव्य-गुण-पर्याय संबंधी अज्ञान के कारण यह आत्मा बंधन को प्राप्त होता है।
जंगली हाथियों को पकड़नेवाले दूसरा प्रयोग यह करते हैं कि जवान हथिनियों को इसप्रकार ट्रेण्ड करते हैं कि वे कामुक हाथियों को आकर्षित करती हुई उक्त गड्डे के पास लाती अथामी अमीभिर्लिङ्गरुपलभ्योद्भवन्त एव निशुम्भनीया इति विभावयति -
अटे अजधागहणं करुणाभावो य तिरियमणुएसु।
विसएसु य प्पसंगो मोहस्सेदाणि लिंगाणि ।।८५।। हैं। स्वयं तो जानकार होने से गड्ढे में गिरने से बच जाती हैं; पर अज्ञानी हाथी अज्ञान के साथसाथ हथिनियों के प्रति होनेवाले राग के कारण बंधन को प्राप्त होता है; उसीप्रकार यह अज्ञानी जीव पंचेन्द्रिय विषयों के रागवश बंधन को प्राप्त होता है।
तीसरा प्रयोग यह है कि मदोन्मत्त हाथियों को इसप्रकार प्रशिक्षित किया जाता है कि वे जंगली हाथी को युद्ध के लिए ललकारते हैं। उक्त हाथी जंगली हाथी को युद्ध के बहाने उक्त गड्डे के पास लाता है और लड़ते समय स्वयं तो जानकार होने से सावधान रहता है; किन्तु उक्त गड्डे से अजानकार हाथी द्वेष के कारण बंधन को प्राप्त होता है। इसीप्रकार यह अज्ञानी आत्मा भी अनिष्ट से लगनेवाले पदार्थों से द्वेष करके बंधन को प्राप्त होते हैं।
निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि जंगली हाथी के समान ही यह आत्मा भी अज्ञान (मिथ्यात्व) से, राग से और द्वेष से बंधन को प्राप्त होता है; इसलिए तत्त्वसंबंधी अज्ञान, राग और द्वेष सर्वथा हेय हैं, त्यागनेयोग्य हैं; जड़मूल से नाश करनेयोग्य हैं।
यहाँ विशेष ध्यान देनेयोग्य बात यह है कि यहाँ द्रव्य-गुण-पर्याय संबंधी अज्ञान को ही बंध का कारण बताया गया, अन्य अप्रयोजनभूत वस्तुओं संबंधी अज्ञान को नहीं। __तात्पर्य यह है कि आचार्यदेव ने इस प्रकरण में तत्त्वज्ञान संबंधी भूल को ही भूल कहा है। यहाँ अन्य लौकिक भूलों से कोई लेना-देना नहीं है ।।८३-८४ ।।
विगत गाथाओं में यह स्पष्ट किया गया है कि बंध का कारण होने से मोह-राग-द्वेष सर्वथा हेय हैं, नाश करनेयोग्य हैं।