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प्रवचनसार-गाथा १००
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पदार्थ विज्ञान स्वयं ही ध्रुव हो जायेगा इसलिये प्रतिसमय का द्रव्य भिन्न-भिन्न ही सिद्ध होगा और वस्तु को सर्वथा अनेकता ही हो जायेगी - ऐसा होने से वस्तु की अखण्ड एकता - नित्यता सिद्ध नहीं होगी। इसलिये अनेकान्तमय वस्तु में नवीन भाव की उत्पत्ति सहित और पुराने भाव के नाश सहित ही ध्रुवता है - ऐसा मानना।
अगली पर्याय का उत्पाद, पीछे की पर्याय का व्यय और अखण्ड सम्बन्ध की अपेक्षा से ध्रुवता - इन तीनों के साथ द्रव्य अविनाभावी है, ऐसा द्रव्य अबाधित रूप से उत्पाद-व्यय-ध्रुवरूप (त्रिलक्षणरूप) चिह्न वाला है।
यहाँ उत्पाद में नवीन भाव की उत्पत्ति सिद्ध करना है, इसलिये उसमें 'सर्ग को शोधनेवाला' - ऐसी भाषा का उपयोग किया है। व्यय में वर्तमान भाव का नाश है, इसलिये उसमें संहार को आरम्भ करनेवाला' ऐसी भाषा का उपयोग किया है। और - ध्रुव में जो है उसकी स्थिति की बात है इसलिये “स्थिति प्राप्त करने के लिए जानेवाला - ऐसी भाषा का उपयोग किया है। - इसप्रकार तीनों बोलों की शैली से अन्तर डाला है।
प्रत्येक पदार्थ में प्रतिसमय में उत्पाद-व्यय और ध्रुव हैं। यदि उन तीनों को एकसाथ न माना जाय तो उसमें दोष आता है। वह दोष बतलाकर उत्पाद-व्यय-ध्रुव का अविनाभावीपना इस गाथा में दृढ़ किया है।
यदि मात्र उत्पाद ही माना जाये तो पुरानी पर्याय के व्यय बिना नवीन पर्याय की उत्पत्ति नहीं होगी अथवा ध्रुव के आधार बिना असत् की उत्पत्ति होगी, इसलिये एक समय में उत्पाद-व्यय-ध्रुव तीनों साथ हों तभी उत्पाद होगा।
यदि मात्र व्यय ही माना जाये तो नवीन पर्याय के उत्पाद बिना पुरानी पर्याय का व्यय ही नहीं होगा अथवा - ध्रुवपना रहे बिना ही व्यय होगा तो सत् का ही नाश हो जायेगा इसलिये एक समय में उत्पाद-व्यय-ध्रुव तीनों साथ ही हों तभी व्यय सिद्ध होगा।
उत्पाद-व्यय के बिना मात्र ध्रुव को ही मानें तो उत्पाद-व्ययरूप व्यतिरेक के बिना ध्रुवपना ही नहीं रहेगा। अथवा एक अंश है वही सम्पूर्ण द्रव्य हो जायेगा। इसलिए उत्पाद-व्यय-ध्रुव तीनों एक समय में साथ ही हों तभी ध्रुवपना रह सकेगा।
मिट्टी में घड़ा आदि किसी भी एक पर्याय के उत्पाद बिना और पिण्ड आदि किसी एक पूर्वपर्याय के व्यय बिना मिट्टी की ध्रुवता ही नहीं रहेगी। और यदि मिट्टी की ध्रुवता न रहे तो मिट्टी की भाँति जगत् के किन्हीं भी भावों की ध्रुवता नहीं रहेगी, सर्वनाश हो जायेगा।
अथवा जो क्षणिक है वही ध्रुव हो जाये तो मन के विकल्प-रागद्वेष-अज्ञान-कर्म - ये सब ध्रुव हो जायेंगे। यदि उत्पाद-व्यय न हो तो अज्ञान का नाश करके सम्यग्ज्ञान की उत्पत्ति, संसार का व्यय होकर सिद्धदशा की उत्पत्ति, क्रोधभाव दूर होकर क्षमाभाव की उत्पत्ति - ऐसा कुछ भी नहीं रहेगा। ____ इसलिये द्रव्य को उत्पाद-व्यय-ध्रुववाला एक साथ ही मानना युक्तियुक्त है सारांश यह है कि - पूर्व पूर्व परिणामों के व्यय के साथ, पीछे-पीछे के परिणामों के उत्पाद के साथ और अन्वय अपेक्षा से ध्रुव के साथ द्रव्य को अविनाभाववाला मानना । उत्पाद व्यय और ध्रुव यह तीनों एक साथ निर्विघ्नरूप से द्रव्य में हैं - ऐसा सम्मत करना, निःसन्देहरूप से निश्चित करना । मात्र उत्पाद, मात्र व्यय का मात्र ध्रुवता द्रव्य का लक्षण नहीं है, किन्तु उत्पाद-व्यय और ध्रुव - ये तीनों एक साथ ही द्रव्य का लक्षण है - ऐसा जानना। ___ इसप्रकार ज्ञेय अधिकार को इस १००वीं गाथा में उत्पाद-व्यय-ध्रुव का अविनाभाव दृढ़ किया। आगे १०१वीं गाथा में उत्पादादि का द्रव्य से अर्थान्तरपने का निषेध करेंगे अर्थात् उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य द्रव्य से पृथक् पदार्थ नहीं हैं, किन्तु सब एक द्रव्य ही हैं - ऐसा सिद्ध करेंगे। .
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