SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० प्रवचनसार-गाथा ९९ पदार्थ विज्ञान मोती के स्पर्श की अपेक्षा से माला का व्यय हुआ, दूसरे मोती के स्पर्श की अपेक्षा माला का उत्पाद हुआ और "माला" रूप से प्रवाह चालू रहा, इसलिये माला ध्रौव्य रहा। इसप्रकार एक के पश्चात् एक-क्रमशः होनेवाले परिणामों में वर्तनेवाले द्रव्य में भी उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य घटित हो जाता है। यदि कोई ऐसा प्रश्न करे कि - उत्पाद-व्यय तो पर्याय के ही होते हैं और द्रव्य ध्रौव्यरूप ही होता है, उसमें परिणमन नहीं होता? तो उसका समाधान यह है कि द्रव्य एकान्त नित्य नहीं है, किन्तु नित्य-अनित्यस्वरूप है, इसलिये परिणाम बदलने से उन परिणामों में वर्तनेवाला द्रव्य भी परिणमित होता है। परिणाम का उत्पाद-व्यय होने से द्रव्य भी उत्पादव्ययरूप परिणमित होता ही है। द्रव्य के परिणमन के बिना परिणाम के उत्पाद-व्यय नहीं होंगे और द्रव्य की अखण्ड ध्रौव्यता भी निश्चित नहीं होगी, इसलिये द्रव्य उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यवाला ही है। "पर्याय में ही उत्पाद-व्यय हैं और द्रव्य तो ध्रौव्य ही रहता है, उसमें उत्पाद-व्यय होते ही नहीं" - ऐसा नहीं है। परिणाम के उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य में प्रवर्तमान द्रव्य भी एक समय में त्रिलक्षणवाला है। __ अहो! स्व या पर - प्रत्येक द्रव्य के परिणाम अपने-अपने काल में होते हैं। परद्रव्य के परिणाम उस द्रव्य के उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य से होते हैं, और मेरे परिणाम मेरे द्रव्य में से क्रमानुसार होते हैं - ऐसा निश्चित करने से पर द्रव्य के ऊपर से दृष्टि हट गई और स्वोन्मुख हुआ। अब स्व में भी पर्याय पर से दृष्टि हट गई, क्योंकि उस पर्याय में से पर्याय प्रगट नहीं होती; किन्तु द्रव्य में से पर्याय प्रगट होती है, इसलिये द्रव्य पर दृष्टि गई। उसे त्रिकाली सत् की प्रतीति हुई। ऐसी त्रिकाली सत् की प्रतीति होने से द्रव्य अपने परिणाम में स्वभाव की धारारूप बहता हुआ और विभाव की धारा का नाश करता हुआ परिणमन करता है, इसलिये द्रव्य त्रिलक्षणरूप ही है। पहले परिणाम के उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य की बात की थी और यहाँ द्रव्य के उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य की बात की है। द्रव्य की सत्ता अर्थात् द्रव्य का अस्तित्व उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यवाला है। मात्र उत्पादरूप, व्ययरूप या ध्रौव्यरूप द्रव्य की सत्ता नहीं है, किन्तु उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य ऐसी तीन लक्षणवाली ही द्रव्य की सत्ता है। उत्पादव्यय और ध्रौव्य - ऐसी तीन पृथक्-पृथक् नहीं हैं, किन्तु वे तीनों मिलकर एक सत्ता है। पहले तो यह कहा था, जो परिणाम उत्पन्न हुए वे अपनी अपेक्षा से उत्पादरूप, पूर्व की अपेक्षा से व्ययरूप और अखण्ड प्रवाह की अपेक्षा से ध्रौव्यरूप हैं - और यहाँ तो अब अन्तिम योगफल निकालकर द्रव्य में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य उतारते हुए ऐसा कहा है कि - द्रव्य में पीछे-पीछे के परिणाम प्रगट होते हैं, इससे द्रव्य का उत्पाद है, पहले-पहले के परिणाम उत्पन्न नहीं होते इसलिये द्रव्य व्ययरूप है, और द्रव्य सर्वपरिणामों में अखण्डरूप से प्रवर्तमान होता है इसकारण द्रव्य ही ध्रौव्य है। इसप्रकार द्रव्य को विलक्षण अनुमोदना।। ___ अहो! समस्त द्रव्य अपने वर्तमान परिणामरूप से उत्पन्न होते हैं, पूर्व के परिणाम वर्तमान में नहीं रहते इसलिये पूर्व परिणामरूप से व्यय को प्राप्त है और अखण्डरूप से समस्त परिणामों के प्रवाह में द्रव्य ध्रौव्यरूप से वर्तते हैं। बस, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप से वर्तते हुए द्रव्य टंकोत्कीर्ण सत् है। ऐसे सत् में कुछ भी आगे पीछे नहीं होता। अपने ज्ञान में ऐसे टंकोत्कीर्ण सत् को स्वीकार करने से, फेरफार करने की बुद्धि तथा “ऐसा क्यों" ऐसी विस्मयता दूर हई, उसी में सम्यक्श्रद्धा और वीतरागता आ गई। इसलिये ज्ञायकपना मोक्ष का मार्ग हुआ। यह “वस्तुविज्ञान" कहा जा रहा है। पदार्थ का जैसा स्वभाव है वैसा ही उसका ज्ञान करना सो पदार्थ-विज्ञान है। ऐसे पदार्थविज्ञान के बिना 25
SR No.008362
Book TitlePadartha Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size148 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy