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________________ नींव का पत्थर की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती; फिर भी उसकी भली होनहार से आकाशमार्ग में गमन करते हुए दो मुनिराजों ने सिंह को देखा और उसे निकट भव्य जानकर वे उसे संबोधनार्थ नीचे उतरे। उस समय सिंह के मुँह में माँस था, हाथ खून से लथ-पथ थे। सौभाग्य से उसे आकाशमार्ग से उतरते हुए मुनिराजों के दर्शन हुए तथा संबोधन प्राप्त होने से उसका जीवन धन्य हो गया। उसकी आँखों से पश्चात्ताप की अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी। उसने आजीवन मांसाहार के त्याग का संकल्प कर लिया। वही जीव आगे चलकर महावीर बना.......।" इसप्रकार भाषणों के प्रवर्तन के पूर्व श्रीमती ज्योत्स्ना ने भगवान महावीर के सिंह की पर्याय से लेकर महावीर तक के जीवनदर्शन का सामान्य परिचय देते हुए घोषणा की कि आगामी दिनों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अन्तर्गत भाषण प्रतियोगिता एवं लघु नाटिका आदि कार्यक्रम होंगे। जिनके विषय होंगे - वस्तुस्वातंत्र्य की सिद्धि में चार अभाव, षट्कारक । वस्तुत: वस्तुस्वातंत्र्य का सिद्धान्त मोक्ष महल की नींव का पत्थर है और मोक्षमार्ग का मूल आधार भी है। इन विषयों से अन्य जन तो अपरिचित हैं ही, महावीर के अधिकांश अनुयायी भी भलीभाँति परिचित नहीं है, अत: इन विषयों पर आधारित कार्यक्रम रखे गये हैं। ज्योत्स्ना ने कहा - “मैं सर्वप्रथम 'चार अभाव के माध्यम से वस्तुस्वातंत्र्य' की सिद्धि पर प्रकाश डालने के लिए अनेकान्त शास्त्री को आमंत्रित करती हूँ, कृपया अनेकान्तजी पधारें और विषय का प्रवर्तन करें।" महावीर जयन्ती की पूर्व संध्या में गोष्ठी की प्राथमिक औपचारिकताओं के पश्चात् अनेकान्त शास्त्री ने मंचासीन महानुभावों एवं सभासदों को संबोधित करते हुए विषय का प्रवर्तन किया। उन्होंने कहा - "यद्यपि आज के भाषण प्रतियोगिता का विषय 'चार अभाव' आम सभाओं में अचर्चित रहने से नवीन श्रोताओं को कुछ अनछुए पहलू नया सा लगेगा; परन्तु भगवान महावीर की अहिंसा और अपरिग्रह की बहुचर्चित बात इस विषय को जाने बिना अधूरी ही रह जाती है; क्योंकि अहिंसा और अपरिग्रह तो धर्मवृक्ष के फल हैं, मोक्ष महल के कंगूरे हैं। धर्मवृक्ष की जड़ या मोक्षमहल की नींव का पत्थर तो वस्तुस्वातंत्र्य का सिद्धान्त है, जिस पर मोक्षमहल अनन्तकाल तक खड़ा रहता है। जैसे नींव के बिना महल की एवं कंगूरों की कल्पना भी नहीं की जा सकती, उसीप्रकार वस्तु स्वातंत्र्य को तथा वस्तु के भाव-अभाव, सत्-असत्, एक-अनेक, चित्-अचित्, नित्य-अनित्यादि धर्मों को जाने-समझे बिना मोक्षमहल की प्रथम सीढी सम्यग्दर्शन की प्राप्ति भी नहीं होगी और प्रथम सीढी के बिना अहिंसा एवं अपरिग्रहरूप कंगूरों सी शोभा कहाँ-कैसे होगी ? वस्तुस्वातंत्र्य के सिद्धान्त की श्रद्धारूप सम्यग्दर्शन रूपी धर्मवृक्ष के बिना अहिंसा और अपरिग्रह के फल कहाँ फलेंगे? यहाँ ज्ञातव्य है कि वस्तुस्वातंत्र्य और अभावों का अतिनिकट का संबंध है। अधिकांश जैनेतर दर्शनों में अभाव' नामक सिद्धान्त की चर्चा है, परन्तु वह चर्चा वस्तुस्वातंत्र्य की नींव का पत्थर नहीं बन सकी; क्योंकि वे अपने मूल उद्देश्य तक नहीं पहुँचे, जबकि यह भी धर्मोपलब्धि में उपयोगी विषय है। इसे भी जन-जन का विषय बनाना ही होगा, अन्यथा धर्माचरण सार्थक नहीं हो सकेगा।" जिनसेन ने बीच में ही प्रश्न किया - "अनेकान्तजी ! मैंने अबतक यह तो सुना था कि हिन्दुस्तान में हिन्दूधर्म के सिवाय, बौद्ध धर्म, जैनधर्म, ईसाईधर्म और इस्लाम धर्म आदि अनेक धर्म और उनके अनेकानेक भेद-प्रभेद हैं, पर ये नित्य-अनित्य, भाव-अभाव आदि धर्मों के नाम मैंने कभी नहीं सुनें । ये भाव-अभाव धर्म क्या है ? मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आया।" अनेकान्तजी ने उत्तर दिया - अरे भाई ! तुम भगवान महावीर के भक्त होकर इतना भी नहीं जानते? तुम जिन धर्मों की बात कर रहे हो - ये कोई धर्म नहीं हैं, ये तो सम्प्रदाय हैं। इनमें कुछ तो व्यक्तियों के नाम पर हैं और कुछ मान्यताओं के आधार पर हैं। जैसे जैनधर्म, बुद्ध धर्म, ईसाई (41)
SR No.008361
Book TitleNeev ka Patthar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size233 KB
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