SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देखो गजमुनि के शिर ऊपर, विप्र अगिनि बहु बारी। शीश जलै जिम लकड़ी तिनको, तौ भी नाहिं चिगारी ।। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ।।३३ ।। सनतकुमार मुनी के तन में, कुष्ठ वेदना व्यापी। छिन्न-भिन्न तन तासों हूवो, तब चिन्त्यो गुण आपी।। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ।।३४ ।। श्रेणिक सुत गंगा में डूब्यो, तब जिननाम चितार्यो। धर सलेखना परिग्रह छोड्यो, शुद्ध भाव उर धार्यो ।। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ।।३५ ।। समंतभद्र मुनिवर के तन में, क्षुधा वेदना आई। तो दुःख में मुनि नेक न डिगियो, चिन्त्यौ निजगुण भाई।। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ।।३६ ।। ललित घटादिक तीस दोय मुनि, कौशांबी तट जानो। नद्दी में मुनि बहकर मूवे, सो दुख उन नहिं मानो।। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ।।३७ ।। धर्मघोष मुनि चम्पानगरी, बाह्य ध्यान धर ठाड़ो। एक मास की कर मर्यादा, तृषा दुःख सह गाढ़ो ।। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ।।३८ ।। श्रीदत मुनि को पूर्वजन्म को, बैरी देव सु आके। विक्रिय कर दुख शीततनो सो, सह्यो साध मन लाके।। २९६00000000000000 100000000000 जिनेन्द्र अर्चना यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ।।३९ ।। वृषभसेन मुनि उष्ण शिला पर, ध्यान धर्यो मनलाई। सूर्यघाम अरु उष्ण पवन की, वेदन सहि अधिकाई।। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ।।४० ।। अभयघोष मुनि काकन्दीपुर, महावेदना पाई। वैरी चण्ड ने सब तन छेद्यो, दुख दीनो अधिकाई।। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ।।४१ ।। विद्युतचर ने बहु दुख पायो, तो भी धीर न त्यागी। शुभभावनसों प्राण तजे निज, धन्य और बड़भागी।। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ।।४२ ।। पुत्र चिलाती नामा मुनि को, बैरी ने तन घाता। मोटे-मोटे कीट पड़े तन, ता पर निज गुण राता ।। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ।।४३ ।। दण्डकनामा मुनि की देही, बाणन कर अरि भेदी। ता पर नेक डिगे नहिं वे मुनि, कर्म महारिपु छेदी।। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ।।४४ ।। अभिनन्दन मुनि आदि पाँच सौ, घानी पेलि जु मारे। तो भी श्रीमुनि समताधारी, पूरबकर्म विचारे ।। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव भारी ।।४५ ।। जिनेन्द्र अर्चना/00000 149
SR No.008354
Book TitleJinendra Archana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bansal
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size552 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy