SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८. श्री चन्द्रप्रभ भगवान का अर्घ्य (अवतार) सजि आठों दरब पुनीत, आठों अंग नमों । पूजों अष्टम जिन मीत, अष्टम अवनि गमों ।। श्री चंदनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगै, मन-वच-तन जजत अमंद, आतमजोति जगै।। ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं निर्वपामीति स्वाहा। ९. श्री पुष्पदन्त भगवान का अर्घ्य (चाल होली) जल फल सकल मिलाय मनोहर, मन-वच-तन हुलसाय। तुम पद पूजौं प्रीति लायकै, जय जय त्रिभुवनराय ।। मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदन्त जिनराय ।। ॐ ह्रीं श्री पुष्पदंतजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं निर्वपामीति स्वाहा। १०. श्री शीतलनाथ भगवान का अर्घ्य (वसंततिलका) कंश्रीफलादि वसु प्रासुक द्रव्य साजै । नाचे रचे मचत बज्जत सज्ज बाजै ।। रागादि दोष मलमर्दन हेतु येवा । चर्चों पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ।। ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय अनयंपदप्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। ११. श्री श्रेयांसनाथ भगवान का अर्घ्य (हरिगीता) जल मलय तंदुल सुमन चरु अरु दीप धूप फलावली। करि अर्घ्य चरचों चरनजुग प्रभु मोहि तार उतावली।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द हैं। दुख दन्द-फन्द निकन्द पूरनचन्द जोति अमन्द हैं।। ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। १. जल २३२८000000000 जिनेन्द्र अर्चना १२. श्री वासुपूज्य भगवान का अर्घ्य (जोगीरासा) जल-फल दरब मिलाय गाय गुन, आठों अंग नमाई। शिवपदराज हेत हे श्रीपति! निकट धरों यह लाई ।। वासुपूज वसुपूज तनुज पद, वासव सेवत आई। बालब्रह्मचारी लखि जिनको, शिवतिय सनमुख धाई।। ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । १३. श्री विमलनाथ भगवान का अर्घ्य (सोरठा) आठों दरब सँवार, मन-सुखदायक पावने । जजों अर्घ्य भर थार, विमल विमल शिवतिय रमन ।। ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। १४. श्री अनन्तनाथ भगवान का अर्घ्य (हरिगीता) शुचि नीर चन्दन शालिशंदन, सुमन चरु दीवा धरों। अरु धूप फल जुत अरघ करि, कर जोर जुग विनती करों।। जगपूज परमपुनीत मीत, अनन्त संत सुहावनों । शिवकंतवंत महंत ध्यावो, भ्रन्तवन्त नशावनों ।। ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं निर्वपामीति स्वाहा। १५. श्री धर्मनाथ भगवान का अर्घ्य (जोगीरासा) आठों दरब साज शुचि चितहर, हरषि हरषि गुन गाई। बाजत दृम दृम दृम मृदंग गत, नाचत ता थेई थाई।। परम धरम-शम-रमन धरम-जिन, अशरन शरन निहारी। पूजू पाय गाय गुन सुन्दर, नाचौं दै दै तारी ।। ॐ ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 17 जिनेन्द्र अर्चना
SR No.008354
Book TitleJinendra Archana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bansal
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size552 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy