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संस्कार से~
खान-पान की शुद्धि, अहिंसक आचरण, सांप्रदायिक सद्भाव और नैतिकता के प्रेरणादायक प्रसंग अच्छे संस्कारों में सहायक होते हैं। प्रस्तुत कृति में स्वाभाविक कथा-यात्रा के बीच-बीच में ऐसे प्रसंग सहजता से प्रस्फुटित होते गये हैं, जो पाठकों को विशेष लाभप्रद होंगे।
(२) संस्कार-विहीन पीढ़ी स्वयं तो संकटग्रस्त है ही, परिवार और समाज के लिए भी घातक सिद्ध हो रही है, अतः समाज की सुरक्षा के लिए भावी पीढ़ी को सुसंस्कार देने की महत्ती आवश्यकता है।
( ३) सौभाग्यशाली हैं वे व्यक्ति, जिन्हें जन्म-जन्मान्तर और पीढ़ी-दरपीढ़ी से तत्त्वज्ञान और सदाचार के संस्कार मिलते आ रहे हैं। तथा धन्य हैं उनका जीवन जो उन संस्कारों के सम्बल से और अपने उग्र पुरुषार्थ से प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कीचड़ में पड़े कंचन की भाँति आत्मोन्नति के मार्ग पर चलते हुए लौकिक बुराईयों से बचे रहते हैं।
प्राणियों में संस्कार दो तरह से आते हैं, एक तो जन्म-जन्मान्तरों से और दूसरे पीढ़ी-दर-पीढ़ियों से। दोनों प्रकार के संस्कारों से नई पीढ़ियाँ प्रभावित होती है। अतः प्रत्येक माता-पिता की यह जिम्मेदारी है कि वे अपनी संतान को दोनों प्रकार से सुसंस्कारित करें और उन्हें कुसंस्कारों से बचायें।
सन्तान के बिगड़ने में माता-पिता की आवश्यकता से अधिक सावधानी और जरूरत से ज्यादा लापरवाही - दोनों का ही समान हाथ होता है।
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