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________________ जिन खोजा तिन पाइयाँ आगम के अनुसार जिसका आयुबंध जिसप्रकार के संक्लेश या विशुद्ध परिणामों में हो जाता है, उसका मरण भी उसी प्रकार के संक्लेश या विशुद्ध परिणामों में होता है। अतः यहाँ यह कहा जायेगा कि जैसी गति वैसी मति । जब तक आयुबंध नहीं हुआ तब तक मति अनुसार गति बंधती है, आयु बंध होने पर संगति के अनुसार मति होती है। अतः यदि कुगति में जाना पसंद न हो तो मति को व्यवस्थित कहना आवश्यक है। जिसको अशुभ आयु और खोटी गति का बन्ध हो जाता है, उसकी मति (बुद्धि) भी गति के अनुसार कुमति ही होती है। बुद्धि व्यवसाय और सहायक आदि सभी कारण-कलाप एक होनहार का ही अनुसरण करते हैं। अर्थात् जैसी होनहार होती है, तदनुसार ही बुद्धि-विचार उत्पन्न होते हैं, व्यवसाय-उद्यम भी उसी प्रकार होने लगता है सहायक निमित्त कारण भी सहज रूप से वैसे ही मिल जाते हैं। (३४) जिसने प्रीति चित्त से भगवान आत्मा की बात भी सुनी है, वह निश्चित ही भव्य है और निकट भविष्य में ही वह मोक्ष प्राप्त करेगा। अपने उपयोग का लौकिक कार्यों के विकल्पों में और विकथाओं में दुरुपयोग न करें। अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी विषय-कषाय में बर्बाद न करके आत्मचिन्तन और परमात्मा के गुणगान में लगायें। विदाई की बेला से की उम्र में आयेगा, तब आगामी जन्म की (वध्यमान) आयु का बंध होगा। यदि उसमें आगामी जन्म (वध्यमान) आयु का बंध नहीं हुआ तो शेष बचे वर्तमान आयु के सत्ताईस वर्षों का दूसरा त्रिभाग बहत्तर (७२) वर्ष की उम्र में आयेगा, उसमें आगामी आयु कर्म का बंध होगा। तब भी न हुआ तो वर्तमान आयु के नौ वर्षों का तीसरा त्रिभाग अठहत्तर (७८) वर्ष की उम्र में आयेगा, जिसमें आगामी आयुकर्म का बंध होगा। ___इसके बाद चौथा त्रिभाग अस्सी (८०) वर्ष में, पाँचवाँ त्रिभाग अस्सी वर्ष आठ माह में, छठवाँ त्रिभाग अस्सी वर्ष दस माह बीस दिन में, सातवाँ त्रिभाग अस्सी वर्ष ग्यारह माह सोलह दिन व सोलह घंटे में और आठवाँ त्रिभाग अस्सी वर्ष ग्यारह माह पच्चीस दिन बारह घंटे व चालीस मिनट में आयेगा, जिसमें आगामी जन्म की आयु का बंध होगा। इसप्रकार आगामी जन्म की (वध्यमान) आयुबंध के आठ अवसर आते हैं। यदि इन आठों बार भी आगामी आयुकर्म का बंध नहीं हुआ तो आवली का असंख्यातवाँ भाग भुज्यमान आयु का शेष रहने पर तो आगामी आयु का बंध अवश्य होता ही है। कदाचित् किसी का आयु बंध हो भी गया हो तो भी निराश होकर बैठने के बजाय यदि तत्त्वाभ्यास द्वारा परिणाम विशुद्ध रखा जाय तो आयु कर्म की स्थिति में घटना-बढ़ना अर्थात् उत्कर्षण-अपकर्षण तो हो ही सकता है, तत्त्वाभ्यास निरर्थक नहीं जाता। आगामी (वध्यमान) आयुकर्म का बंध, जो वर्तमान (भुज्यमान) आयु के त्रिभाग में होता है, उस त्रिभाग का समय जीवन में अधिकतम आठ बार आता है। फिर भी यदि आयुकर्म का बंध न हो तो जीवन के अन्त समय में अर्थात् मरण के अन्तर्मुहूर्त पहले तक भी होता है। मान लो आपकी वर्तमान (भुज्यमान) आयु इक्यासी वर्ष है तो इक्यासी में तीन का भाग देकर उसमें से एक (तीसरा) भाग घटाने पर अर्थात् दोतिहाई उम्र बीतने पर इक्यासी वर्ष का प्रथम त्रिभाग चौवन (५४) वर्ष जिनके जीवन में मानसिक शान्ति रहेगी, जिनका जीवन विषय-कषायों से संक्लेशित नहीं होगा, जिनके जीवन में विशुद्ध परिणाम रहेंगे, उन्हें अशुभगतियों में जाने की कारणभूत नरक-तिर्यंच आयु का बंध ही नहीं होगा। ऐसी स्थिति में उनका कु-मरण कैसे हो सकता है? वे तो जब भी देह छोड़ेंगे समता और समाधिपूर्वक ही छोड़ेंगे। पर ध्यान रहे, जिनका जीवन सुख-शान्ति एवं निराकुलता में बीतता (२५)
SR No.008353
Book TitleJina Khoja Tin Paiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size268 KB
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