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एक सभासद ने जिज्ञासा प्रगट की - संगीत सुनाने के संदर्भ में गंधर्वसेना ने जिन देवदूत नारद, मंत्री | बलि और मुनि विष्णुकुमार को याद किया, ये कौन हैं ?
उत्तर मिला - उज्जैनी नगरी में श्रीधर्मा नाम का राजा राज्य करता था। उसकी श्रीमती नाम की पटरानी थी। वह श्रीमती वास्तव में श्रीमती अर्थात् उत्तम शोभा सम्पन्न और महा गुणवती थी। राजा श्री धर्मा के बलि, बृहस्पति, नमुचि और प्रह्लाद - ये चार मंत्री थे। इन चारों में जैन साधुओं के प्रति इकतरफा द्वेष की भावना थी।
किसी समय जिनश्रुत के पारगामी महामुनि अकम्पन अपने सातसौ मुनि शिष्यों के साथ उज्जैनी के बाह्य उपवन में पहुँच कर विराजमान हुए ही थे कि समस्त नगर में पानी में तेल की भांति मुनिसंघ के आने की खबर फैल गई। उन मुनिराजों के संघ की वन्दना के लिए नगरवासी सागर की तरह उमड़ पड़े। महल पर खड़े राजा ने नगरवासियों की भारी भीड़ को उपवन की ओर जाता देख मंत्रियों से पूछा कि ये लोग असमय में कहाँ जा रहे हैं ? चारों मंत्रियों में मुनियों के प्रति ईर्ष्या भावना तो थी ही, अत: तीन तो चुप ही रहे, बलि मंत्री ने उत्तर दिया कि ये लोग अज्ञानी जैन मुनियों की वन्दना को जा रहे हैं। उमड़ती भीड़ को जाता देख राजा श्रीधर्मा ने भी वहाँ जाने की इच्छा प्रगट की। मंत्रियों ने राजा को प्रथम तो वहाँ जाने से रोकने का प्रयास किया; परन्तु राजा ने उनकी बात नहीं मानी; क्योंकि वे मुनियों के प्रति मंत्रियों की अरुचिभावना को पहचानते थे। जब राजा स्वयं वन्दनार्थ वहाँ गये तो चारों मंत्री भी विवश होकर राजा के साथ गये। अकम्पनाचार्य को पहले से ही ऐसा कुछ आभास हो गया था कि यहाँ कुछ गड़बड़ हो सकती है, संघ पर || उपसर्ग भी आ सकता है; अतः उन्होंने सबको मौन रहने का आदेश दे रखा था, परन्तु उससमय श्रुतसागर |४