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॥ तुंगगिरि के शिखर पर स्थित बलदेव ने भी संसारचक्र का क्षय करने में उद्यत हो नानाप्रकार से तप किया व छह-छह मासों के उपवास कर अन्तर्मुखीवृत्ति को दृढ़ किया - ऐसा करने से उनकी कषायें और काया क्षीण होती गयी। आत्मबल निरन्तर बढ़ता गया। बलदेव मुनिराज वन में विहार करने लगे। जब यह बात नगर-नगर एवं गाँव-गाँव में फैल गयी तो इस बात को सुनकर समीपवर्ती शत्रुता रखनेवाले राजा क्षुभित | हो सशस्त्र वहाँ जा पहुंचे। ____ नानाप्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित राजाओं को आया देख देव सिद्धार्थ ने मुनि बलदेव के प्रभाव को दर्शाने के लिए उस वन में सिंहों के समूह रच दिए। जब आगत राजाओं ने मुनिराज बलदेव के चरणों के समीप सिंहों को देखा तो वे उनकी सामर्थ्य को जानकर उनसे अपना शत्रुता का भाव छोड़कर तथा उन्हें नमस्कार कर शान्त भाव को प्राप्त हो गये। तभी से मुनि बलदेव नरसिंह पद से प्रसिद्ध हो गये।
इसप्रकार १०० वर्ष तक तपकर बलदेव मुनिराज ने अन्त में समाधि धारण कर ब्रह्मलोक में इन्द्रपद पाया।
श्रीकृष्ण के बाद उनके छोटे भाई जरतकुमार जब राज्य शासन करने लगे तब उनके प्रति प्रजा ने बहुत आदर प्रगट किया। कलिंग राजा की पुत्री जरतकुमार की उत्तम पटरानी थी। उससे राजकुल की ध्वजास्वरूप वसुध्वज नामक पुत्र हुआ। हरिवंश के शिरोमणि उस युवा पर पृथ्वी का भार रख जरतकुमार तप के लिए वन को चला गया। ___ वसुध्वज के सुवसु नामक सुयोग्य पुत्र हुआ। सुवसु के कलिंग देश की रक्षा करनेवाला भीमवर्मा पुत्र हुआ और इसी क्रमस्वरूप उस कुल में अनेकों राजा हुए। उसी वंश का आभूषण कपिष्ट नाम का राजा हुआ, उसके अजातशत्रु, उससे शत्रुसेन, शत्रुसेन से जितारि और जितारि के जितशत्रु नाम का पुत्र हुआ।
यह वही जितशत्रु है, जिसके साथ भगवान महावीर के पिता राजा सिद्धार्थ की छोटी बहिन का विवाह हुआ था। जो अत्यन्त प्रतापी और शत्रुओं को जीतनेवाला था।
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