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४. कौतुक स्वभावी विनोदप्रिय नारद शौर्यपुर में सुमित्रा तापस और सोमयशा नामकी उसकी स्त्री चन्द्रकान्ति से नारद का जन्म हुआ। एक दिन वह दम्पत्ति बालक नारद को एक वृक्ष के नीचे सुलाकर और उसे अकेला छोड़ भिक्षावृत्ति के लिए चला गया। इसी बीच पूर्वभव के स्नेह वश एक जृम्मकदेव उस बालक को उठा कर वैताढ्य पर्वत पर ले गया। वहाँ उसने उस बालक का भलीभाँति पालन-पोषण तो किया ही, आठवर्ष की अवस्था में ही उसे जिनागम और आकाशगामनी विद्या में निपुण भी कर दिया। यही बालक आगे चलकर 'नारद' नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यद्यपि नारद बालब्रह्मचारी, देशव्रती थे पर उनका स्वभाव कौतूहली था, विनोदप्रिय होने से अपना और दूसरों का मनोरंजन किया करते थे। स्वाभिमानी कुछ अधिक ही थे, इस कारण उचित मान-सम्मान न मिलने पर असंतुष्ट हो जाते और बदले की भावना से प्रतिक्रियायें करने में भी नहीं चूकते । जैसा कि उन्होंने सत्यभामा के साथ बदले की भावना से किया। ___ अपनी घुमक्कड़ प्रवृत्ति के अनुसार एक बार पूर्व सूचना दिये बिना ही नारद श्रीकृष्ण के अन्त:पुर में पहुँच गये, उस समय सत्यभामा दर्पण के सामने खड़ी अपना श्रृंगार करने में तल्लीन थी। इसकारण वह उनका स्वागत-सत्कार नहीं कर सकी । बस, इतनी-सी बात पर नारदजी नाराज हो गये और उन्होंने सत्यभामा का मानभंग करने की ठान ली। उन्होंने सोचा 'स्त्रियों को सबसे बड़ा दुःख होता है सौतिया डाह का' अतः क्यों न श्रीकृष्ण की शादी एक ऐसी सर्वांग सुन्दर कन्या से करा दी जाय जो सत्यभामा से भी सुन्दर हो।" ___बस, फिर क्या था, वे निकल पड़े सुन्दर कन्या की तलाश में और उन्होंने रुक्मणी की ओर कृष्ण का ध्यान आकर्षित करके, उसका अपहरण कराकर उसे सत्यभामा की सौत बनाकर अपने अनादर का बदला ले ही लिया; जबकि सत्यभामा ने बुद्धिपूर्वक उनकी उपेक्षा नहीं की थी।
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