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हे अरहंतदेव ! कर्मभूमि का प्रारंभ कब / कैसे हुआ ? दिव्यध्वनि से उत्तर मिला- सुनो ! जैन भूगोल के अनुसार जम्बूद्वीप के दक्षिण में जो गंगा-सिन्धु के बीच भरतक्षेत्र है, वहाँ भोगभूमि की समाप्ति तथा कर्मभूमि के प्रारंभ में चौदह कुलकर हुये, उनमें पहला कुलकर प्रतिश्रुत था । यह प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी पूर्वभव के स्मरण से सहित था । उसके समय प्रजा | को अकस्मात् पूर्णमासी के दिन प्रथमबार आकाश में एकसाथ चमकते हुये दो बिम्ब दिखाई दिये। उन्हें | देख प्रजा के लोग अपने ऊपर आये भयंकर उत्पात की आशंका से भयभीत हो उठे तथा सभी प्रजा प्रतिश्रुत कुलकर की शरण में आ गई । तब प्रतिश्रुत ने कहा - " आप लोग भयभीत न हों। ये पूर्व में सूर्यमण्डल और पश्चिम दिशा में चन्द्रमण्डल दिखाई दे रहा है। ये दोनों ज्योतिषी देवों के स्वामी हैं, भ्रमणशील हैं एवं निरन्तर सुमेरु पर्वत की प्रदक्षिणा देते हुये घूमते रहते हैं। पहले भोगभूमि के समय इनका प्रकाश (प्रभापुंज) ज्योतिरंग जाति के कल्पवृक्षों से आच्छादित था, इसकारण ये दृष्टिगोचर नहीं थे । अब उनकी | प्रभा क्षीण हो जाने से ये दिखाई देने लगे हैं। अब सूर्य के निमित्त से दिन-रात प्रकट होंगे और चन्द्रमा के निमित्त से कृष्णपक्ष व शुक्लपक्ष का व्यवहार चलेगा। दिन में चन्द्रमा सूर्य के तेज से अस्त जैसा हो जाता है, स्पष्ट दृष्टिगोचर नहीं होता और सूर्यास्त के बाद रात को स्पष्ट दिखाई देने लगा ।
प्रतिश्रुत नाम के इन प्रथम कुलकर ने ही भोगभूमि का अंत और कर्मभूमि का प्रारंभ होने से उत्पन्न भयों | के कारण राज्य की अव्यवस्था को नियंत्रित करने के लिये हा ! मा !! और धिक् !!! इसप्रकार दण्ड की तीन धारायें स्थापित कीं। यदि कोई स्वजन या परजन कालदोष से मर्यादा को लांघता था तो उसके साथ अपराधी के अनुरूप इन दण्डों का प्रयोग किया जाता था ।
इन्हीं प्रतिश्रुत के कुल में क्रमश: सन्मति, क्षेमंकर, क्षेमंधर, सीमंकर, सीमंधर, विपुलवाहन, चक्षुस्मान्, यशस्वी, अभिचन्द्र, चन्द्राभ, मरुदेव, प्रसेनजित और अन्तिम चौदहवें कुलकर के रूप में राजा नाभिराय हुये । राजा नाभिराय से ही वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म हुआ ।
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