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| आस्रव का रुक जाना संवर है। यह भाव संवर और द्रव्य संवर के भेद से दो प्रकार का है। संसार की कारणभूत रागादि क्रियाओं का रुक जाना भाव संवर है और कर्मरूप पुद्गल द्रव्य का आना रुक जाना वह द्रव्यसंवर है। तीन गुप्तियाँ, पाँच समितियाँ, दसधर्म, बारह अनुप्रेक्षायें, पाँच चारित्र और बाईस परिषहजय - ये संवर के कारण हैं। | निर्ग्रन्थ मुद्राधारी मुनि के बंध के कारणों का अभाव तथा निर्जरा द्वारा जो समस्त कर्मो का क्षय होता है, वह मोक्ष है। इन जीवादि सात तत्त्वों के श्रद्धान रूप सम्यग्दर्शन आदि ही मोक्ष के साक्षात् साधन हैं।
पुनः प्रश्न - लोक का स्वरूप क्या है ?
समाधान - "जिसमें कालद्रव्य सहित पंचास्तिकाय द्रव्य दिखाई देते हैं या होते हैं, उसे लोक कहते हैं। यह लोक चौदह राजू ऊँचा है। इस लोक का आकार कमर पर हाथ रखकर तथा पैर फैलाकर अचल खड़े हुए मनुष्य के आकार जैसा है।
जहाँ मनुष्य और तिर्यंच रहते हैं - उसे तिर्यक लोक वा मध्यलोक कहते हैं, इसके नीचे अधोलोक हैं, वहाँ सात नरक हैं, उन नरकों में नारकी जीवों का निवास है।
पुण्य के फल में स्वर्ग, पाप के फल में नरक तथा धर्म के फल में मुक्ति प्राप्त होती है। अधोलोक के निवासी नारकियों को भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी, मार-काट आदि के भयंकर असीमित दुःख सागरों पर्यन्त सहने पड़ते हैं। उन नरक भूमियों के नाम हैं - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा एवं महातम प्रभा ।
उन नरकों में नारकी जीवों को भूख ऐसी लगती है कि तीन लोक का पूरा अनाज खा जाये तो भी भूख न मिटे, किन्तु एक दाना भी नहीं मिलता। इतनी प्यास लगती है कि सभी समुद्रों का पूरा पानी पी जायें तो भी प्यास न बुझे, किन्तु एक बूंद पानी भी पीने को नहीं मिलता। सर्दी इतनी कि सुमेरु बराबर लोहे का गोला जम जाये और गर्मी इतनी कि मेरु बराबर लोहे का गोला पानी की तरह पिघल जाये । नारकी
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