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एक दिन युवा नेमिकुमार कुबेर द्वारा भेजे हुए वस्त्र, आभूषण, माला और विलेपन से सुशोभित हो प्रसिद्ध राजाओं से घिरे बलदेव तथा नारायण आदि यादवों से भरी हुई कुसुमचित्रा सभा में गये । राजाओं ने अपनेअपने आसन छोड़ सम्मुख जाकर उन्हें नमस्कार किया। श्रीकृष्ण ने भी आगे आकर उनकी अगवानी की और दोनों भाई दो इन्द्रों के समान या दो सिंहों के समान सिंहासनों पर विराजमान हो गये।
वहाँ थोड़ी देर में ही यह चर्चा छिड़ गई कि सबसे अधिक बलवान कौन है ??
किसी ने कहा - अर्जुन बलवान है, किसी ने युधिष्ठिर के बल की प्रशंसा की । कोई पराक्रमी भीम | को तो कोई उद्धत सहदेव व नकुल को बलवान ठहराने लगे। किसी ने कहा - बलदेव की बराबरी कोई | नहीं कर सकता तो किसी ने दुर्धर गोवर्द्धन पर्वत उठाने वाले श्रीकृष्ण को सबसे अधिक बलवान बताया ।
इसप्रकार श्रीकृष्ण की सभा में राजाओं के भिन्न-भिन्न विचार सुनकर अतुल्यबल के धनी नेमिकुमार की ओर देखते हुए बलदेव ने कहा - " तीनों जगत में नेमिकुमार के समान दूसरा कोई बलवान नहीं है। | ये अपनी हथेली से पृथ्वी तल को उठा सकते हैं, गिरनार को कम्पायनमान कर सकते हैं । ये तीर्थंकर हैं, इनसे अधिक बलवान और कौन हो सकता है?"
इसप्रकार बलदेव के वचन सुन श्रीकृष्ण को मन में विश्वास नहीं हुआ, उन्होंने कहा - "हे तीर्थंकर नेमि ! यदि बलदेव के कहे अनुसार आपके शरीर में ऐसा उत्कृष्ट बल है तो बाहु-युद्ध से ही उसकी परीक्षा क्यों न कर ली जाये ?"
नेमिकुमार ने कुछ नये अंदाज में श्रीकृष्ण से कहा- "मुझे इस विषय में मल्ल-युद्ध की आवश्यकता
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