________________
on
F85
| शम्ब जुआ खेलने में तो बहुत चतुर था ही, अन्य अनेक कलाओं में भी निपुण था। एक बार उसने | सुभानु का सब धन जीत लिया और सब लोगों में बाँट दिया। वह नाना प्रकार के पक्षियों की बोली बोलने | में, सुगंधि की परीक्षा करने आदि की प्रतियोगिताओं में तो समय-समय पर जीतता ही रहा; एक बार तो उसने अपना बल-पराक्रम दिखाकर सुभानु को ऐसा जीता कि श्रीकृष्ण उस पर बहुत प्रसन्न हो गये तथा उन्होंने उसे पुरस्कार स्वरूप मुँह माँगा यथेच्छ वर माँगने का आग्रह किया; फलस्वरूप उसने एक माह के लिए राज्यसत्ता का सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त कर ऐसी अनैतिक क्रियायें कीं, जिससे समस्त प्रजा त्राहि-त्राहि || कर उठी। बहु-बेटियों का शील सुरक्षित नहीं रहा, परन्तु यह स्थिति बहुत काल नहीं रही।
जब श्रीकृष्ण तक शम्ब के स्वच्छन्दता पूर्वक किए अनैतिक आचरण की चर्चा पहुँची तो उन्होंने भी बहुत डाँटा-फटकारा और मुँह माँगे वरदान के दुरुपयोग पर उन्हें पश्चाताप भी बहुत हुआ।
शम्ब के चरित्र में विविधिता के दर्शन भी होते हैं। एक ही रात्रि में १००-१०० नैतिक-अनैतिक शादियाँ करनेवाला अत्यन्त कामुक प्रवृत्ति वाला होते हुए भी अन्त में ऐसा पलटा कि आत्मसम्मुखता का अपूर्व पुरुषार्थ करके सम्पूर्ण मोह-राग-द्वेष का नाश कर उसी भव में मुक्त हो गया।
ऐसे उदाहरण पुराणों में भी बहुत कम मिलते हैं।
इस सर्ग की विषयवस्तु में पाठकों को सीखने की बात यह है कि अन्त में वही शम्ब समस्त दुष्प्रवृत्तियों का त्याग कर संसार, शरीर और भोगों से विरक्त होकर मुनिव्रत अंगीकार कर आत्मसाधना का अपूर्व पुरुषार्थ कर चार घातिया कर्मों का अभाव कर केवली हुए, भगवान बन गये तो हम भले अबतक भूले-भटके हैं, पापी हैं, फिर हम भी शम्ब की तरह भगवान बन सकते हैं। अत: निराश होने की जरूरत नहीं है।
जब जाग जाओ तभी है सबेरा।
न सोचो अभी मित्र कितना अंधेरा।। निर्वाणकाण्ड में भी शम्ब और प्रद्युम्न के नामों का उल्लेख है।
शम्ब प्रद्युम्न कुंवर दोय भाय, अनिरुद्ध आदि नमूं तसुपाय ।
BF
FR4E र