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॥ संयोग से श्रीकृष्ण के जन्म के समय पिछले सात दिनों से बराबर घनघोर वर्षा हो रही थी। बालक को | ले जाते समय गोपुर के द्वार के पास पानी की एक बूंद बालक श्रीकृष्ण की नाक में चली गयी, जिससे | उसे जोर की छींक आ गई। गोपुर के द्वार के ऊपर ही कंस के पिता राजा उग्रसेन कंस के द्वारा बंधन में | रह रहे थे, उन्होंने छींक की आवाज सुनी तो सहज ही उसे परोक्ष आशीर्वाद दिया कि 'हे बालक ! तू निर्विघ्न | रूप से चिरकाल तक जीवित रहेगा। उनके इस प्रिय आशीर्वाद को सुनकर बलदेव तथा वसुदेव बहुत प्रसन्न हुए और उग्रसेन से कहने लगे कि हे पूज्य! आप इस रहस्य को रहस्य ही रखें। देवकी के इस पुत्र से ही कंस द्वारा किए इस बन्धन से तुम्हारा छुटकारा होगा। इसके उत्तर में उग्रसेन ने विश्वास दिलाते हुए आश्वस्त किया कि यह बालक शत्रु से अज्ञात रहकर ही वृद्धि को प्राप्त होगा। उग्रसेन के उक्त वचन की प्रशंसा कर दोनों शीघ्र ही नगरी से बाहर निकले और वृन्दावन की ओर चले गये, जहाँ गोप सुनन्द और उसकी पत्नी यशोदा को बालक श्रीकृष्ण को सौंपा तथा उसे सब घटनाओं से अवगत कराया। गोपी यशोदा और गोप सुनन्द श्रीकृष्ण को पाकर अत्यन्त हर्षित हुए और उन्होंने अपने जीवन को धन्य माना ।
भारतीय संस्कृति में भी कृष्ण का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। श्रीकृष्ण का चरित्र बहुत व्यापक है। श्रीकृष्ण के विषय में अनेक प्राचीन वृतान्त हैं, जो उनके अन्तर-बाह्य व्यक्तित्व के विषय में बहुत कुछ बताते हैं।
जैन हरिवंश पुराण में हरिवंश की एक शाखा यादव कुल और उसमें उत्पन्न दो शलाका पुरुषों के चरित्र विशेषरूप से वर्णित हैं। इन शलाका पुरुषों में एक बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ और दूसरे नववे नारायण लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण हैं । नेमिकुमार ने अपने विवाह के अवसर पर प्रतिबंधित पशुओं की दीन दशा देख और उनका आक्रन्दन सुनकर संसार से विरक्त हो परिणय से पूर्व ही संन्यास धारण कर मुक्ति का मार्ग अपना लिया और दूसरे श्रीकृष्ण ने कौरव-पाण्डव युद्ध में अर्जुन का सारथी बनकर अपना बल कौशल दिखलाया तथा कालिया मर्दन और पर्वत को सिर पर उठा लेने अर्थात् पर्वत पर बसे लोगों को संकट से निकालने जैसे अनेक लोक-कल्याण के कार्य किये।