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वहीं नगर में बाँटेगा, वह तुम्हें मारनेवाला पुत्र उत्पन्न करेगा। निमित्त ज्ञानियों के कहे अनुसार वहाँ ऐसे व्यक्ति की खोज हो ही रही थी। इसकारण वसुदेव पकड़ लिए गये और उन्हें तत्काल प्राणान्त करने की भावना | से एक चमड़े की भाथड़ी में बंद कर पहाड़ की चोटी से नीचे गिरा दिया।
कहते हैं पुण्यात्मा कहीं भी जाय, यदि उसे एक मारता है तो दूसरा बचाने वाला भी मिल ही जाता है, | अतः सदैव पुण्य कार्य करते ही रहना चाहिए और पापों से सदैव दूर रहना चाहिए। एतदर्थ आत्मा-परमात्मा
का ध्यान ही एक मात्र वह उपाय है, जिससे जीव लोक/परलोक में सुखी रह सकता है। ___कुमार वसुदेव नीचे गिरने ही वाले थे कि अकस्मात् वेगवती ने वेग से आकर उन्हें थाम लिया। जब वेगवती उन्हें कहीं ले जाने लगी तो वे मन में ऐसा विचार करने लगे कि देखो! जिसप्रकार भारुड़ पक्षी चारुदत्त को हरकर ले गया था, उसीप्रकार मुझे यह हरकर कहीं ले जा रही है। न जाने अब क्या होनेवाला है? ___ कुमार वसुदेव को संसार असार दिखने लगा। वे सोचते हैं - "ये बन्धु-बान्धवों के सम्बन्ध, ये भोग सम्पदायें दुःखदायक हैं और यह सुन्दर कान्तियुक्त शरीर का मोह भी दुःखद ही है, फिर भी मेरे जैसे मूर्ख प्राणी इसके राग-रंग में उलझे हुए हैं, इन्हें सुखद मान बैठे हैं। जीव अकेला ही पुण्य-पाप करता है, अकेला ही सुख-दुःख भोगता है। अकेला ही पैदा होता है और मरता है, फिर भी आत्मीयजनों के राग में अटका रहता है, जो आत्महित में लग गये हैं। जो भोगों को त्याग कर मोक्षमार्ग में अग्रसर हो गये हैं, वे ही धीरवीर मनुष्य सुखी हैं।
इसप्रकार चिन्तन में डूबे वसुदेव को वेगवती ने पर्वत तट पर उतारा। पति को देख वेगवती चिरवियोग का स्मरण कर विलख-विलख कर रोने लगी। तदन्तर वसुदेव के द्वारा कुशलक्षेम पूछने पर प्रिया वेगवती ने पति के हरे जानेपर अपने घर जो दुःख उठाये, वे सब कह सुनाये। उसने कहा कि “मैंने आपको विजयार्द्ध की दोनों श्रेणियों में खोजा, अनेक वनों एवं नगरों में देखा तथा समस्त भरत क्षेत्र में चिरकाल तक ढूँढा, परन्तु आप नहीं मिले।"
बहुत घूमते-फिरने के बाद मैंने मदनवेगा के पास आपको देखा तो यह विचार किया कि यहाँ रहते हुए ॥
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