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________________ गोम्मटेश्वर बाहुबली : एक नया चिन्तन यद्यपि यह तथ्य भारत के सभी धर्मों, संस्कृतियों और तीर्थों पर समान रूप से प्रतिफलित होता है, तथापि यहाँ जैनधर्म और श्रमण संस्कृति के संदर्भ में विचार अपेक्षित है। जैनधर्म व श्रमण संस्कृति से सम्बन्धित जितने भी सिद्धक्षेत्र हैं, वे सभी उत्तर भारत में हैं, एक भी सिद्धक्षेत्र दक्षिण भारत में नहीं है। अतः दक्षिण भारत वाले तो सिद्धक्षेत्रों की वंदना करने के लिए उत्तर भारत में सहज आते: पर यदि दक्षिण भारत में गोम्मटेश्वर बाहुबली की इतनी विशाल मूर्ति नहीं होती तो उत्तर भारत के धार्मिक यात्री दक्षिण भारत किसलिए जाते? यह एक विचारणीय प्रश्न है। दक्षिण भारत में इतनी विशाल मूर्ति के निर्माण के कारण अनेक हो सकते हैं और ऐतिहासिक एवं किंवदन्तियों के आधार पर अनेक बताये भी जाते हैं, पर मेरी दृष्टि में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण दक्षिण भारत में धार्मिक इतिहास या पुराणों के अनुसार तीर्थंकरों के कल्याणक आदि महत्वपूर्ण स्थान न होने के कारण उत्तर भारत के धार्मिक यात्रियों को दक्षिण भारत आने के लिए आकर्षण पैदा करना भी हो सकता है। यदि सम्मेदशिखर और गिरनार पर कोई आकर्षक मंदिर या मूर्ति न हो तो भी लोग उनकी यात्रा अवश्य करेंगे; कारण कि इन क्षेत्रों का सम्बन्ध तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों से है। पर दक्षिण भारत का सम्बन्ध तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों से न होने के कारण जबतक कोई विशेष आकर्षण न होगा, उत्तर भारत के यात्रियों का इतनी दूर आना, कम से कम उस युग में तो असंभव गोम्मटेश्वर बाहुबली : एक नया चिन्तन ही था, जबकि यातायात के साधन सुलभ न थे। उत्तर से दक्षिण जाने में वर्षों लग जाते थे, रास्ते में अगणित कठिनाइयाँ थीं, जान की बाजी लगाकर ही जाना पड़ता था। जिसने इस विशाल मूर्ति का निर्माण कराया है. उसके हृदय में यह भावना भी अवश्य रही होगी कि ऐसे आश्चर्यकारी जिनबिम्ब की स्थापना की जावे कि जो हिमालय की तलहटी तक अपना आकर्षण बिखेर सके। मूर्ति के उत्तराभिमुख होने से भी इस बात की पुष्टि होती है। उसकी भावना रही हो या न रही हो, पर इसमें कोई सन्देह नहीं कि हजार वर्ष से आज तक उत्तर भारत के जैन यात्रियों की दक्षिण यात्रा का आकर्षण बाहुबलीजी की यह विशालकाय मूर्ति ही रही है। दूसरा आकर्षण मूडबद्री में विराजमान रत्नमयी जिनबिम्ब भी हैं। इनकी यात्रा करने के लिए लाखों यात्री प्रति वर्ष उत्तर भारत से दक्षिण भारत की ओर जाते हैं, बाहुबलीजी के दर्शनों की पावन भावना से खिंचे चले जाते हैं और उनके गुणगान करते वापस आते हैं। इतनी आकर्षक मूर्तियाँ बहत कम होती हैं जो अपने आकर्षण से मूर्तिमान को भुला दें। बाहुबली का विशाल जिनबिम्ब ऐसा ही है कि लोग दर्शन करते समय मूर्ति के ही गीत गाते दिखाई देते हैं, मूर्तिमान की ओर उनका ध्यान ही नहीं जाता। इसप्रकार की चर्चा करते लोग आपको कहीं भी मिल जावेंगे कि क्या विशाल मूर्ति है, पत्थर भी कितना साफ व बेदाग है, हजार वर्ष में कहीं कोई क्रेक भी नहीं आया । क्या चमक है, क्या दमक है, हजार वर्ष तक तो उसका पॉलिश भी फीका नहीं (5)
SR No.008349
Book TitleGommateshwar Bahubali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size75 KB
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