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________________ चैतन्य चमत्कार जाता है, निहाल हो जाता है, सम्पन्न हो जाता है। स्वामीजी ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा - हमारे पास कोई जादू की लकड़ी नहीं है। हाथ में पसीना आता है, उससे शास्त्र के पृष्ठ खराब न हो जावें, इसलिए लकड़ी रखते हैं। हाथ की लकड़ी दिखाते हुए बोले "यह लकड़ी कोई जादू की लकड़ी है- यह लोगों का कोरा भ्रम है। इसी भ्रम के कारण एक बार तो कोई लकड़ी चुरा ले गया।” "तो आप इस भ्रम को दूर क्यों नहीं करते ?" यह पूछने पर सहज भाव से स्वामीजी कहने लगे "हमने तो कई बार चर्चा में और प्रवचनों के बीच भी कहा है। इससे अधिक हम क्या कर सकते हैं ?" प्रश्न: यह बात ठीक है कि आपके पास न तो कोई जादू है और न उसका कोई प्रयोग ही आप करते हैं, पर जो व्यक्ति एक बार आपके पास आता है, आपके प्रवचनों को सुनता है, वह आपका हो जाता है; इसका क्या कारण है ? उत्तर : हमारे पास आत्मा की बात है, दुःख से छूटने की बात है, सच्चा सुख प्राप्त करने की बात है। सभी प्राणी सुख चाहते हैं और दुःख से बचना चाहते हैं। अतः जो भी शान्त भाव से बिना पूर्वाग्रह के हमारी बात सुनता है, वह अवश्य प्रभावित होता है । हमारे पास तो वीतराग सर्वज्ञ प्रभु (5) चैतन्य चमत्कार की बात है, वही कहते हैं। प्रभावित होनेवाले अपनी पात्रता से प्रभावित होते हैं। प्रश्न : लोग तो ऐसा भी कहते हैं कि वे लोग सम्पन्न भी हो जाते हैं ? उत्तर : हो जाते होंगे, पर हमारे आशीर्वाद से नहीं होते । वे हमारे पास आते हैं, महीनों रहते हैं, तत्त्व की बात शान्ति से सुनते हैं। हो सकता है कि उन्हें पुण्य बंधता हो और सम्पन्न भी होते हों, पर उसमें हमारा किया कुछ नहीं। हम तो धन को धूल-मिट्टी कहते हैं। धन का मिल जाना कोई महत्त्व की बात तो है नहीं। महत्त्व की बात तो आत्मा का अनुभव है। प्रश्न: आपको लोग गुरुदेव कहते हैं। क्या आप साधु हैं ? गुरु तो साधु को कहते हैं ? उत्तर : साधु तो नग्न दिगम्बर छटवें सातवें गुणस्थान की भूमिका में झूलते भावलिंगी वीतरागी सन्त ही होते हैं। हम तो सामान्य श्रावक हैं, साधु नहीं। हम तो साधुओं के दासानुदास हैं । अहा ! वीतरागी सन्त कुन्दकुन्दाचार्य, अमृतचन्द्र आदि मुनिवरों के स्मरण मात्र से हमारा रोमांच हो जाता है । प्रश्न : तो फिर आपको लोग गुरुदेव क्यों कहते हैं ? उत्तर : भाई ! गोपालदासजी बरैया को भी तो गुरु कहते थे । देव-शास्त्र-गुरु वाले गुरु तो पंच परमेष्ठी में आचार्य,
SR No.008346
Book TitleChaitanya Chamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size204 KB
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